अल्लाह के नाम से आरम्भ करता हूँ जो अति मेहरबान और दयालु है। | जानने अल्लाह

अल्लाह के नाम से आरम्भ करता हूँ जो अति मेहरबान और दयालु है।


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सभी प्रकार की प्रशंसायें अल्लाह रब्बुल आलमीन के लिए हैं और दरूद व सलाम अवतरित हो हमारे नबी मुहम्मद पर जो कि अंतिम संदेष्टा और आखिरी रसूल हैं।

नि:सन्देह इस्लाम धर्म सभी धर्मों में सब से परिपूर्ण, सब से उत्तम, सर्व श्रेष्ठ एंव अंतिम धर्म है। और शुद्ध बुद्धि इस धर्म को बहुत जल्द स्वीकार करती है, इस लिए कि इस धर्म के अन्दर अनेक प्रकार की उत्तमता, विशेषताएं, नीतियाँ तथा ऐसी खूबियाँ हैं जो इस (इस्लाम) से पहले के धर्मों में नहीं पार्इ जातीं। पस इस्लाम धर्म वह अंतिम धर्म है जिस को अल्लाह ने अपने मोमिन बन्दों के लिए पसन्द कर लिया है, जैसा कि उस का कथन है:

الْيَوْمَ أَكْمَلْتُ لَكُمْ دِينَكُمْ وَأَتْمَمْتُ عَلَيْكُمْ نِعْمَتِي وَرَضِيتُ لَكُمْ الإِسْلاَمَ دِينًا (المائدة: 3).

''आज मैं ने तुम्हारे लिये दीन (धर्म) को पूरा कर दिया और तुम पर अपना इनआम पूरा कर दिया और तुम्हारे लिए इस्लाम धर्म को पसन्द कर लिया। (सूरतुल मार्इदा:3)

पस अल्लाह ने इस धर्म को परिपूर्ण कर दिया है। इसी कारण यह धर्म हर प्रकार से पूर्ण है।

और अल्लाह तआला ने हमारे लिये इस (इस्लाम) धर्म को पसन्द कर लिया है, और वह तो अपने बन्दों के लिए सब से पूर्ण उत्तम तथा सर्व श्रेष्ठ वस्तु को ही पसन्द करता है।

तो इस्लाम ही एक ऐसा धर्म है जो आत्मा तथा शरीर की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकता है, इस धर्म ने मानवता को कम्यूनिष्ट की तरह किसी हथियार का ढाल नहीं बनाया और न ही रहबानियत की तरह मानवता को उस की अनिवार्य चाहतों से वंचित रखा और न ही भौतिक पशिचमी सभ्यता (माíी मगि़रबी तहज़ीब) की तरह बग़ैर किसी नियम प्रबंध के कामवासना की बाग डोर उस के लिये खुली छोड़ दी।

इस्लाम धर्म ही केवल ऐसा धर्म है जिस के अन्दर किसी प्रकार की प्रतिकूलता तथा जटिलता नहीं है, अल्लाह तआला ने फरमाया:

وَلَقَدْ يَسَّرْنَا الْقُرْآنَ لِلذِّكْرِ فَهَلْ مِنْ مُدَّكِرٍ (القمر: 17)

''तथा नि:सन्देह हम ने क़ुरआन को समझने के लिए आसान कर दिया है पर क्या कोर्इ नसीहत प्राप्त करने वाला है? (सूरतुल-क़मर:17)

इस्लाम ही केवल वह धर्म है जिस के अन्दर मानवता की कठिन से कठिन समस्याओं का समाधान पाया जाता है। आस्था के संबंध में पूज्य, संसार तथा मानवता के बारे में सहीह फिक्र प्रदान करता है तथा अहकाम के संबंध में जीवन के उन सभी गोशों को संगठित करता है जो उपासना, अर्थशास्त्र, राजनीति, समस्याएं, व्यकितगत मसाइल तथा विश्व स्तर के संबंध इत्यादि को समिमलित हैं तथा चरित्र के संबंध में मनुष्य एंव समाज को सभ्य बनाता है।

इस्लाम ही ऐसा धर्म है जिस के अन्दर उन सभी प्रश्नों का संतोष जनक और इतमिनान बख्श उत्तर विस्तार के साथ मौजूद है जिस ने मानवता को आश्चर्य चकित कर रखा है कि मानवता का जन्म क्यों हुआ? शुद्ध पथ (सीधा मार्ग) कौन सा है? तथा इस (मानवता) का अंतिम ठिकाना कहाँ है?

आस्था, चरित्र, उपासना, मुआमलात, तथा व्यकितगत विषय और साधारण अहकाम के बारे में इस्लाम सभी धर्मों में सब से पूर्ण, उत्तम, सर्वश्रेष्ठ और उचित है, वास्तव में यह ऐसा ही है इस लिये कि यह किसी मनुष्य का बनाया हुआ इंसानी धर्म नहीं है परन्तु यह र्इश्वरीय धर्म है जिस के अहकाम को अल्लाह तआला ने बनाया है। अल्लाह तआला ने फरमाया:

وَمَنْ أَحْسَنُ مِنْ اللَّهِ حُكْمًا لِقَوْمٍ يُوقِنُونَ (المائدة: 50). ''विश्वास रखने वाले लोगों के लिये अल्लाह से बेहतर निर्णय करने वाला कौन हो सकता है? (सूरतुल माइदा:50)

और यह धर्म हर प्रकार के अहकाम तथा इस्लामी निज़ाम को समिमलित है और सभी अहकाम तथा व्यवस्था में सब से पूर्ण तथा उत्तम और लोगों के लिए सब से उचित है। तथा इस के अन्दर किसी प्रकार की खराबी, प्रतिकूलता और दुष्टता तथा बिगाड़ नहीं है। और सभी धर्मों की तुलना में इस्लाम को शुद्ध बुद्धि बहुत जल्द स्वीकार करती है।

वास्तव में इस्लाम पूरे जीवन के लिए एक पूर्ण विधान है तथा जिस समय इस धर्म को वास्तविक रूप में लागू करने का अवसर प्रदान किया गया तो इस ने एक ऐसा आदर्श समाज तथा सुसजिजत इंसानी सभ्यता प्रदान किया जिस के अन्दर हर प्रकार की उन्नति तथा सभ्यता पार्इ और जिस समाज के अन्दर चरित्र तथा ऊँचे नमूनों ने उन्नति की और सामाजिक न्याय निखरा और इंसानी सभ्यता अपने सुसजिजत रूप में सामने आर्इ।

इस्लाम ने तमाम इंसानों को बराबर के अधिकार प्रदान किए, पस किसी अरबी व्यकित को किसी अजमी पर और किसी सफेद रंग के व्यकित को किसी काले रंग के व्यकित पर कोर्इ प्रधानता नहीं परन्तु यह (प्रधानता) आत्मनिग्रह तथा सत्कर्म के आधार पर होगी। अत: इस्लाम के अन्दर गोत्र-वंश या रंग या देश आदि का पक्षपात नहीं है, बलिक सत्य तथा न्याय के सामने सभी एक समान हैं।

इस्लाम ने हाकिमों को उनके सारे अहकाम में हर व्यकित के विषय में पूर्ण न्याय देने का आदेश दिया। पर इस्लाम के अन्दर कोर्इ भी व्यकित नियम से बाहर नहीं है।

और इस्लाम ने लोगों को सहयोग तथा भरणापोषण के आदेश दिये और धनवानों को निर्धनों की सहायता करने और उन के बोझ को हल्का करने तथा उन निर्धनों को एक उत्तम श्रेणी तक पहुँचाने का आदेश दिया और सारे लोगों को परामर्श का आदेश दिया कि जिस परामर्श के नतीजे में यदि लाभदायक चीज़े प्रकट हों तो उन को अपना लिया जाए, यदि हानिकारक चीज़ें प्रकट हों तो उन को छोड़ दिया जाए।

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