प्राकृतिक प्रमाण | जानने अल्लाह

प्राकृतिक प्रमाण


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शुद्ध अन्तरात्मा अल्लाह के अस्तित्व की बिना प्रमाण पुष्टी करती है
शुभ क़ुरआन ने अल्लाह के अस्तित्व को ज़ियादा प्रमाणित करने का कष्ट नहीं किया क्योंकि शुभ क़ुरआन ने यह बता दिया कि शुद्ध अन्तरात्माऔर ऐसी फितरत जो बहुदेववाद की गंदगियों से दागदार नहीं हुई अल्लाह के अस्तित्व को बिना प्रमाण के मानती है, केवल यही नहीं बल्कि एकेश्वरवाद भी एक जन्मजात, प्रकृतिक और स्प्ष्ट बात हैlअल्लाह सर्वशक्तिमान का फ़रमान है :

)فأقم وجهك للدين حنيفاً فطرت الله التي فطر الناس عليها لا تبديل لخلق الله ذلك الدين القيم ) [ الروم : 30[

(अतः एक ओर का होकर अपने रुख़ को 'दीन' (धर्म) की ओर जमा दो, अल्लाह की उसप्रकृति का अनुसरण करो जिसपर उसने लोगों को पैदा किया। अल्लाह की बनाई हुईसंरचना बदली नहीं जा सकती। यही सीधा और ठीक धर्म हैl) [अर-रूम: ३०]यही प्रकृति उस घटना की व्याख्या देती है जो धर्म के इतिहास में शोधकर्ताओं द्वारा खोजी गई है कि सभी राष्ट्रों के इतिहास में जिनका अध्ययन हुआ यह बात मिलती है कि सभी जाति कोई न कोई पूजनीय रखते थे जिनको वह पवित्र समझते थे और उनका आदर करते थे l(१)
यहाँ यह प्रश्न उठाया जा सकता है कि: अगर अल्लाह की ओर रुख़ करना प्रकृतिक और जन्मजात बात होती तो लोग विभिन्न युगों में विभिन्न देवताओं को न पूजतेl
इसका उत्तर यह है कि: अन्तरात्मा मनुष्य को निर्माता अपनाने की ओर आमंत्रित करती है लेकिन मनुष्य कई वातावरण और प्रभाव से घिरा हुआ है जो उसे वास्तविक पूज्यनीय से भटका  देते हैं l
इसी प्रकार माता पिता बच्चों के दिलों में जो बैठाते हैं उससे भी बच्चे प्रभावित होते हैंlइसी तरह लेखकों, शिक्षकों और शोधकर्ताओं द्वारा जो विचार समाज में फैलाए जाते हैं उनसे भी नौनिहालों की प्रकृति प्रभावित होते है और उनमें परिवर्तन आता है lऔर इन बातों से जन्मजात प्रकृति गन्दी होती है बल्कि उनसे अन्तरात्मा की आँख पर परदा पड़ जाता है और वे तथ्य के ग्रहण में असफल रह जाते हैं l
इस बात की पुष्टि हज़रत पैगंबर-उन पर इश्वर की कृपा और सलाम हो- के शुभ शब्द से भी होती हैlबुखारी और मुस्लिम में हज़रत अबू-हुरैरा-अल्लाह उनसे प्रसन्न रहे- से उल्लेखित है कि हज़रत पैगंबर-उन पर इश्वर की कृपा और सलाम हो- ने फ़रमाया :

)كل مولود يولد على الفطرة ، فأبواه يهودانه ، أو ينصرانه ، أو يمجسانه ) (2(

(प्रत्येक बच्चा प्रकृति पर जन्म लेता है उसके बाद उसके माता-पिता उसे यहूदी बना देते हैं या उसे ईसाई बना देते हैं या उसे मजूसी बना देते हैं l) इस हदीस में उन्होंने यह नहीं कहा कि “और मुसलमान बना देते हैं” क्योंकि इस्लाम तो प्रकृति के समान है l
 यहाँ यह प्रश्न उठाया जा सकता है : क्या यदि किसी बच्चे को ऐसा रखा जाए कि उसकी प्रकृति प्रभावित न हो पाए तो क्या वह एकेश्वरवादी और अपने पालनहार को जाननेवाला निकले गा? इसका उत्तर यह दिया जा सकता है कि यदि मानव जाति के मनुष्य शैतानों से दूर रख दिए जाएं और वे उसकी प्रकृति को गंदा न कर सके तो भी जिन्नात के शैतानों से कैसे बच सकेंगे? जबकि शैतान ने तो शपथ उठा रखा है कि वह आदमियों को अवश्य बहकाए गा lजैसा कि अल्लाह सर्वशक्तिमान ने बता दिया है:

)قال فبعزتك لأغوينهم أجمعين – إلا عبادك المخلصين(

(उसने कहा, "तेरे प्रताप की सौगन्ध! मैं अवश्य उन सबको बहकाकर रहूँगा,सिवाय उनमें से तेरे उन बन्दों के, जो चुने हुए हैं।") (साद:८२,८३)और शैतान को यह शक्ति भी दी गई कि वह मनुष्य के हृदय तक पहुंच जाए और उसमें बुरे ख़याल डाले ताकि मनुष्य का पूरा पूरा परीक्षण हो सके कि कौन अल्लाह की सुनता है और कौन शैतान की सुनता है lसही हदीस में आया है :

)إن الشيطان يجري من الإنسان مجرى الدم ، وإني خشيت أن يقذف في قلوبكما شراً ) أو قال : ( شيئا ً(

(निस्संदेह, शैतान मनुष्य में खून के दौड़ने के सामान दौड़ता है और निस्संदेह मुझे डर लगा कि कहीं वह तुम्हारे दिल में कोई बुराई (या उन्होंने यह फ़रमाया) “कोई चीज़”न डाल दे l(३)

 

क़ुरआन में शैतान के विषय में ब्यान आया है और उससे अल्लाह की पनाह मांगने का आदेश है lअल्लाह सर्वशक्तिमान फ़रमाता है :

 

)يوسوس في صدور الناس ) [ الناس : 5[

(जो मनुष्यों के सीनों में वसवसा डालता हैं l) (अन-नास:५) 
और यह भी सही हदीस में है कि प्रत्येक मनुष्य के लिए जिन्न में से एक साथी होता है जो उसे बुराई का आदेश देता है और उसके लिए उसे उकसाता हैlऔर क़ुरआन में शैतान के बहकावे के विषय में आया है:

)قال قرينه ربَّنا ما أطغيته ولكن كان في ضلال بعيدٍ ) [ ق : 27[

(उसका साथी बोला, "ऐ हमारे रब! मैंने उसे सरकश नहीं बनाया, बल्कि वह स्वयं ही परले दरजे की गुमराही में था।")(क़ाफ:२७)
लेकिन कोई भी व्यक्ति शैतान के इन हमलों से अल्लाह की पनाह लेने के द्वारा बच सकता है जैसा कि इस सूरा में आदेश दिया गया है :

)قل أعوذ برب الناس – ملك الناس – إله الناس – من شر الوسواس الخناسالذي يوسوس في صدور الناس – من الجنة والناس ) [ الناس : 1-6[

(कहो, "मैं शरण लेता हूँ मनुष्यों के रब की मनुष्यों के सम्राट की मनुष्यों के उपास्य की वसवसा डालनेवाले, खिसक जानेवाले की बुराई से जो मनुष्यों के सीनों में वसवसा डालता हैं जो जिन्नों में से भी होता हैं और मनुष्यों में से भी l) (अन-नास १-६)

जिन्न के शैतान प्रकृति को अपवित्र और भ्रष्ट करने में एक प्रमुख भूमिका निभाता है lइमाम मुस्लिम की सहीह नामी पुस्तक में इयाज़ बिन हिमार से कथित है कि अल्लाह के पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपा और सलाम हो-ने एक दिन उपदेश दिया और उसमें फ़रमाया:

)ألا إن ربي أمرني أن أعلمكم ما جهلتم مما علمني يومي هذا : كلّ مال نحلته (4) عبادي حَلالٌ ، وإني خلقت عبادي حنفاء كلهم ، وإنهم أتتهم الشياطين ، فاجتالتهم عن دينهم ، وحرمت عليهم ما أحللت لهم ، وأمرتهم أن يشركوا بي ما لم أنزل به سلطاناً ) . (5(

(याद रखो, मेरे पालनहार ने मुझे आदेश दिया है कि तुम्हें जिसे तुम नहीं जानते हो वह अल्लाह के सिखाने से आज के मेरे इस दिन में तुम्हें सिखा दूँ lजो धन भी मैंने अपने बन्दों को दिया है वह हलाल है lनिस्संदेह मैंने अपने सारे बन्दों को सादा पैदा किया lतो शैतान उसके पास आए और उन्हें उनके धर्म से भटका दिए lऔर जो मैंने उसके लिए हलाल किया है वे उनें हराम कर दिए और उन्हें मेरा साझी बना लेने का आदेश दिए जिन पर मैंने कोई प्रमाण नहीं उताराl)(५)    कठिनाईयां अन्तरात्मा को पवित्र करती हैं
अक्सर ऐसा समय आता रहता है जब अन्तरात्मा के सामने से परदे हट जाते हैं और धुंधला करनेवाले धूल उसके आगे से छट जाते हैंlविशेषरूप से जब कोई दर्दनाक विपदा आ जाती है या एक व्यक्ति किसी कठिनाई के चुंगल में फँस जाता है जिस में मनुष्य की मदद की आशा टूट जाती है lऔर उससे छुटकारा का कोई रास्ता नहीं रहता है ऐसे समय में कितने ऐसे नास्तिक हैं जो अपने पालनहार को पहचान लेते हैं आस्तिक बन जाते हैं और अपनी नास्तिकता से तौबा कर लेते हैं lऔर कितने ऐसे मूर्तिपूजक हैं जो उस घटना के कारण एकेश्वरवादी होगए lजैसा कि शुभ क़ुआन में आया है :

)حتى إذا كنتم في الفلك وجرين بهم بريح طيبة وفرحوا بها جاءتها ريح عاصفٌ وجاءهم الموج من كل مكان وظنوا أنهم أحيط بهم دعوا الله مخلصين له الدين لئنِ أنجيتنا من هذه لنكوننَّ من الشاكرين ) [ يونس : 22[

(यहाँ तक कि जब तुम नौका में होते हो और वह लोगो को लिए हुए अच्छी अनुकूलवायु के सहारे चलती हैं और वे उससे हर्षित होते हैं कि अकस्मात उनपर प्रचंडवायु का झोंका आता है, हर ओर से लहरें उनपर चली आती है और वे समझ लेते हैकि बस अब वे घिर गए, उस समय वे अल्लाह ही को, निरी उसी पर आस्था रखकरपुकारने लगते है, "यदि तूने हमें इससे बचा लिया तो हम अवश्य आभारी होंगे।") (यूनुस:२२)

हमने सुना है कि कई बार हवाई जहाज के यात्री मुसीबत में पड़ते समय कैसे अपने पालनहार की ओर झुक गए lविशेष रूप से जब लोग विमान में उड़ रहे थे और ऊपर ही कोई खराबी हो गई lऔर विमान अंतरिक्ष में सबको लेकर हिलने डोलने लगा और इधर उधर हिचकोले खाने लगा और पायलट भी जवाब दे दिया और कह दिया मेरे हाथ में कुछ नहीं lऔर जब पायलट ही जवाब दे दिया तो यात्रियों की क्या चलेगी lयहां नास्तिकता गायब हो गई और ज़बान पर प्रर्थना के शब्द अपने आप जारी हो गए और दिल पूरी पवित्रता के साथ अपने प्रभु के लिए झुक गए lऔर ऐसी गंभीर स्थिति में नास्तिकता और बहुदेवतावाद सब सर छिपा लिए कोई सर उठा न सके केवल आस्था ही आस्था रह गई।

जिन बहुदेवतावादियों की ओर संदेशवाहक भेजे गए थे वे भी सिरजनहार को मानते थे :
जिन अरबों को पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपा और सलाम हो- ने संबोधित किया था वे अल्लाह के अस्तित्व को मानते थे ओर यह भी मानते थे वही अकेला ब्रह्मांड का निर्माता है और वे यह भी स्वीकार करते थे कि अकेला वही  रोज़ी प्रदान करनेवाला, लाभकारी और हानिकारक है ... लेकिन वे उसके साथ दूसरों को भी पूजते थे और उपासना में उसे अकेला नहीं मानते थे। 

और यही प्रश्न उनके सामने रखा जा रहा था कि तुम अल्लाह के साथ क्यों साझी बनाते हो? अकेले उसकी उपासना क्यों नहीं करते हो जबकि तुम यह मानते हो कि आकाश और पृथ्वी का निर्माता और मालिक अकेला वही है lजैसा कि अल्लाह सर्वशक्तिमान ने क़ुरआन में ब्यान किया:

سورة الزخرف:9))( ولئن سألتهم من خلق السموات والأرض ليقولن خلقهن العزيز العليم)

(यदि तुम उनसे पूछो कि "आकाशों और धरती को किसने पैदा किया?" तो वे अवश्यकहेंगे, "उन्हें अत्यन्त प्रभुत्वशाली, सर्वज्ञ सत्ता ने पैदा किया।"))अज़-ज़ुख़रुफ़:९)

और सूरा अल-मुमिनून में आया है :

) قل لمن الأرض ومن فيها إن كنتم تعلمون سيقولون لله قل أفلا تذكرون قل من رب السموات السبع ورب العرش العظيم سيقولون لله قل أفلا تتقون قل من بيده ملكوت كل شيء وهو يجير ولا يجار عليه إن كنتم تعلمون سيقولون لله قل فأنى تسحرون) (المؤمنون: 89(

(कहो, "यह धरती और जो भी इसमें आबाद हैं , वे किसके हैं, बताओ यदि तुम जानते हो?"वे बोल पड़ेंगे, "अल्लाह के!" कहो, "फिर तुम होश में क्यों नहीं आते?"कहो, "सातों आकाशों का मालिक और महान राजासन का स्वामी कौन है?"वे कहेंगे, "सब अल्लाह के हैं ।" कहो, "फिर डर क्यों नहीं रखते?"कहो, "हर चीज़ की बादशाही किसके हाथ में है, वह जो शरण देता है और जिसकेमुक़ाबले में कोई शरण नहीं मिल सकती, बताओ यदि तुम जानते हो?"वे बोल पड़ेंगे, "अल्लाह की।" कहो, "फिर कहाँ से तुमपर जादू चल जाता है?"  (अल-मुमिनून: ८९)यह तो ज्ञात है कि अरब, काबा को आदरणीय सझते थे और उसकी तीर्थयात्रा करते थे और उन अरबों के पास पूजापाठ का कुछ बचा-खुचा रिवाज था।
लोगों की नास्तिकता आज तो और भी गंभीर है: 
तथापि,आजलोगों की गुमराही तो और भी खाई की तह तक पहुँच चुकी है lहम देख रहे हैं कि आज कुछ लोगों का दावा है कि संसार का कोई निर्माता नहीं हैlबल्कि इस नास्तिकता को सिद्धांत बनाते जा रहे हैं जिस के अनुसार अपने जीवन को ढाल रहे हैं lबल्कि कई देशों की बुनियाद इसी पर आधारित है और ऐसे लोगों की संख्या कई कई लाखों तक पहुँच चुकी है जो इस सिद्धांत पर चल रहे हैं।
और यह तर्क जगह जगह फैलाने का प्रयास किया जा रहा है  बल्कि उसे प्रमाणित करने के लिए पुस्तकें लिखी जा रहीं हैं और अब इस तर्क का अध्ययन भी किया जा रहा हैlऔर उनके नेताओं ने तो उसे वैज्ञानिक विधि का नाम भी दे दिया है और उसपर प्रमाण भी पेश करने की कोशिश की जा रही है।
इसलिए इस मुद्दे को हम ज़रा विस्तार में प्रमाणित करने की आवश्यकता महसूस कर रहे हैं ।

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