क्या क़ुरआन के हाफिज़ से शादी करने वाली महिला के लिए कोई निर्धारित अज्र व सवाब है ॽ | जानने अल्लाह

क्या क़ुरआन के हाफिज़ से शादी करने वाली महिला के लिए कोई निर्धारित अज्र व सवाब है ॽ


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उस आदमी से शादी करने का क़ुरआन व हदीस के अंदर क्या प्रतिफल, पुण्य और लाभ वर्णित है जो क़ुरआन का हाफिज़ है और वह क़ुरआन ही को अपना महर नियुक्त करता है ॽ अल्लाह तआला आप को सर्वश्रेष्ठ बदला दे।



हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए है।

क़ुरआन करीम के हाफिज़ से शादी करने की फज़ीलत वही है जो नुबुव्वत के मीरास (अर्थात् क़ुरआन व हदीस का ज्ञान) के धारक से शादी करने की फज़ीलत है, अगर यह हाफिज़ उस चीज़ पर अमल करने वाला है जिसका वह हाफिज़ है तो उसके अंदर भलाई के सभी तत्व एकत्रित हो गए ; आंतरिक भलाई इस कारण कि वह अपने दोनों पहलुओं के बीच अल्लाह तआला के कलाम को सुरक्षित किए हुए है, तथा नेक अमल और सद्व्यवहार के द्वारा जाहि़र (प्रत्यक्ष) की भलाई, अल्लाह सर्वशक्तिमान का फरमान है:

﴿ثُمَّ أَوْرَثْنَا الْكِتَابَ الَّذِينَ اصْطَفَيْنَا مِنْ عِبَادِنَا ﴾ [فاطر:32]   

“फिर हम ने इस किताब (क़ुरआन) का वारिस उन लोगों को बनाया जिन्हें हम ने अपने बंदों में से चयन कर लिया (पसंद फरमाया)।” (सूरत फातिर: 32)

तथा अल्लाह सुब्हानहु व तआला का फरमान है:

﴿إِنَّ الَّذِينَ يَتْلُونَ كِتَابَ اللَّهِ وَأَقَامُوا الصَّلاةَ وَأَنْفَقُوا مِمَّا رَزَقْنَاهُمْ سِرًّا وَعَلانِيَةً يَرْجُونَ تِجَارَةً لَنْ تَبُورَ لِيُوَفِّيَهُمْ أُجُورَهُمْ وَيَزِيدَهُمْ مِنْ فَضْلِهِ إِنَّهُ غَفُورٌ شَكُورٌ ﴾ [فاطر:29-30]

“जो लोग अल्लाह की किताब की तिलावत करते हैं और नमाज़ की पाबंदी रखते हैं और जो कुछ हम ने उन्हें प्रदान किया है उस में से गुप्त और खुले तौर पर खर्च करते हैं, वो ऐसी तिजारत के आशावान हैं जो कभी घाटे में न होगी। ताकि वह (अल्लाह) उन को उन के संपूर्ण प्रतिफल (मज़दूरियाँ) दे और उन को अपनी कृपा व अनुकम्पा से और अधिक प्रदान करे, निःसंदेह वह बड़ा क्षमादाता क़दरदान है।” (सूरत फातिर: 29, 31)

मुतर्रिफ रहिमहुल्लाह जब इस आयत को पढ़ते थे तो कहते थे कि : यह क़ारियों की आयत है। देखिये: तफ्सीरुल क़ुरआनिल अज़ीम (6/545)

तथा क़ुरआन करीम के हाफिज़ के फज़ाइल का विस्तार पूर्वक वर्णन हमारी साइट पर प्रश्न संख्या : (14035) और (20803) में गुज़र चुका है।

अतः जिस व्यक्ति की यह फज़ीलत और अज्र व सवाब है उस से शादी करने से निःसंदेह इस बात की अधिक आशा है कि वह पत्नी के लिए सौभाग्य, अल्लाह के हुक्म से बच्चों के लिए शराफत और बेहतरी, और संपूर्ण परिवार के लिए प्रसन्नता, स्वीकारता और संतोष का करण बनेगा।

परंतु यह सब इस शर्त के साथ है कि क़ुरआन का हाफिज़ उस में जो कुछ आदेश हैं उनका पालन करने वाला हो, उसके चरित्र से सुसज्जित हो, उसके व्यवहार से शोभित हो, अपने समस्त मामले में अल्लाह से डरने वाला हो। और ऐसे ही गुणों का धारक शादी करते समय लड़के या लड़की के खोज और दृष्टि का केंद्र होना चाहिए, मात्र क़ुरआन का स्मरण (कंठस्थ) नहीं जो उसके अनुसार अमल करने से रिक्त हो, या मात्र शब्दों और अक्षरों का रट लेना नहीं जो व्यवहार और आचरण पर प्रभाव न डाले, ऐसे व्यक्ति से तो बचना और उपेक्षा करना चाहिए ताकि उस से धोखा न हो, जैसाकि इब्नुल जौज़ी ने “तल्बीस इब्लीस” (पृष्ठः 137-140) में एक अध्याय में इस पर चेतावनी दी है जिसे उन्हों ने क़ारियों पर शैतान के तल्बीस (बहकावा व फुसलावा) के वर्णन के बारे में क़ायम किया है।

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने कुछ सहाबा की उनके क़ुरआन करीम को  याद करने के बदले शादी की थी, चुनाँचे सह्ल बिन सअद अस्साइदी रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने कहा:

“मैं अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास क़ौम के अंदर था, यकायक एक महिला खड़ी हुई और कहा: ऐ अल्लाह के पैगंबर ! इस ने अपने आपको आप के लिए अनुदान कर दिया है, अतः आप इस के बारे में अपना विचार प्रस्तुत कीजिए। आप ने उसे कोई उत्तर नहीं दिया। वह फिर खड़ी हुई और कहा: ऐ अल्लाह के पैगंबर ! इस ने अपने आपको आप के लिए हिबा कर दिया है, अतः आप इस के बारे में अपना विचार प्रस्तुत कीजिए। आप ने उसे कोई उत्तर नहीं दिया। फिर वह तीसरी बार खड़ी हुई और कहा: इस ने अपने आपको आप के लिए भेंट कर दिया है, अतः आप इस के बारे में अपना विचार प्रस्तुत कीजिए। इस पर एक आदमी खड़ा हुआ और कहा: ऐ अल्लाह के पैगंबर ! मेरा इस से निकाह कर दीजिए। आप ने फरमाया “कया तुम्हारे पास कोई चीज़ है ॽ उस ने कहा: नहीं। आप ने फरमाया: “जाओ तलाश करो, चाहे लोहे की एक अंगूठी ही सही।” वह गए और तलाश किए फिर वापस आकर कहा : मुझे कोई चीज़ नहीं मिली, लोहे की एक अंगूठी भी नहीं ! तब आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा: क्या तुम्हारे पास क़ुरआन से कोई चीज़ है (क्या तुम्हें कुछ क़ुरआन याद है) ॽ उस ने उत्तर दिया: मुझे फलाँ और फलाँ सूरत याद है। आप ने फरमाया: “जाओ, मैं ने तुम्हारे पास जो कुछ क़ुरआन है उस के बदले इस महिला से तुम्हारा निकाह कर दिया।”)

इसे बुखारी (हदीस संख्या: 5149) ने अध्याय: क़ुरआन पर शादी कराना, में और मुस्लिम (हदीस संख्या: 1425) ने रिवायत किया है।

हाफिज़ इब्ने हजर रहिमहुल्लाह ने कहा:

“क़ाज़ी अयाज़ ने फरमाया: नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान (जो कुछ तुम्हारे पास क़ुरआन है उसके कारण) में दो अर्थ की संभावना है:

उन दोनों में सबसे स्पष्ट यह है कि: उन के पास जो क़ुरआन है वह उस में से एक निर्धारित मात्रा उसे सिखा दें, और यही उसकी महर होगी। यह टीका मालिक से वर्णित है, और इसका समर्थन कुछ शुद्ध तरीक़ो (सनदों) में आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इस कथन से होता है: “तुम उसे क़ुरआन से (कुछ) सिखा दो।”

और यह भी संभावित है कि “बा” लाम के अर्थ में हो, अर्थात् तुम्हारे पास जो क़ुरआन है उसके कारण, इस तरह आप ने उसे सम्मान दिया कि उसकी शादी उस महिला से बिना महर के कर दी इस कारण कि वह क़ुरआन या उसके कुछ भाग का हाफिज़ था।

इसी के समान उम्मे सुलैम के साथ अबू तल्हा का क़िस्सा भी है, जिसे इमाम नसाई ने जाफर बिन सुलैमान के तरीक़ (सनद) से, साबित से और उन्हों ने अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है और उसे सहीह क़रार दिया है, कि उन्हों ने कहा: (अबू तल्हा ने उम्मे सुलैम को शादी का पैगाम दिया, तो उन्हों ने कहा: अल्लाह की क़सम! आपके जैसे आदमी को ठुकराया नहीं जाता है, परंतु आप काफिर हैं और मैं मुालमान हूँ और मेरे लिए आप से शादी करना हलाल नहीं है, यदि आप इस्लाम स्वीकार कर लेते हैं तो वही मेरा महर है, और मैं आप से उस के अतिरिक्त कोई चीज़ नहीं माँगूँगी। चुनांचे वह मुसलमान हो गये, तो यही (अर्थात इस्लाम स्वीकार करना ही) उनका महर था।)

तथा नसाई ने अब्दुल्लाह बिन उबैदुल्लाह बिन अबी तल्हा के तरीक़ से अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा: ( अबू तल्ह़ा ने उम्मे सुलैम से शादी की तो उन दोनों के बीच इस्लाम स्वीकार करना ही महर था।) उन्हों ने संपूर्ण क़िस्सा का उल्लेख किया और उसके अंत में फरमाया: तो यह उन दोनों के बीच महर था। इस पर नसाई ने यह सुर्खी लगाई है: “इस्लाम पर शादी करना”, फिर उन्हों ने सहल की हदीस पर यह सुर्खी लगाई है: “क़ुरआन की एक सूरत पर शादी कराना”, तो गोया कि वह दूसरी संभावना के समर्थन की ओर रूझान रखते हैं। संछेप के साथ “फत्हुल बारी” (9/212, 213) से समाप्त हुआ।

हम ने जो कुछ ऊपर उल्लेख किया है उसके उपरांत, हम कोई एक विशिष्ट हदीस या असर नहीं जानते हैं जो क़ुरआन करीम के हाफिज़ से शादी करने वाली स्त्री की फज़ीलत का वर्णन करती हो कि उसके लिए इतना और इतना अज्र व सवाब है, या उसके लिए फज़ीलत वगैरह का वादा है।

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