संक्षिप्त बात कीजिए और बहस मत कीजिए | जानने अल्लाह

संक्षिप्त बात कीजिए और बहस मत कीजिए


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कहते हैं कि सलाह देने वाला एक जल्लाद की तरह है l कोड़ा मारने वाले आदमी के कौशल के अनुसार दर्द रहता है l

याद रखयेगा कि मैंने कहा है "कोड़ा मारने वाले आदमी के कौशल" न कि "कोड़ा मारने वाले आदमी की शक्ति" क्योंकि कठोर कोड़ा मारने वाला आदमी ज़ोर से चाबुक मारता है l  मार खाने वाले आदमी के शरीर को मारते समय दर्द होता है और कुछ ही दिनों में दर्द को भूल जाता है l

किन्तु माहिर कोड़ा मारने वाला आदमी वह है जो ज़ोर से तो कोड़ा नहीं मारता है लेकिन वह कोड़ा बरसाना अच्छी तरह जानता है l

उसी तरह सलाह देने वाला अत्यधिक भाषण या एक लंबी सलाह की ओर ध्यान नहीं देता है, सलाह देने के ढंग पर ध्यान देता है l यदि आप सलाह देने का प्रयास करते हैं तो फिर लंबा लेक्चर मत दीजिए, बल्कि

जहाँ तक होसके संक्षिप्त रूप में बात कह दीजिए, विशेष रूप से जब ऐसे मुद्दे पर सलाह दे रहे हों जिस पर कोई विवाद न हो, क्रोध के विषय में, या शराब पीने के बारे में या नमाज़ छोड़ने के विषय में या माता पिता की बात टालने के विषय में आदि l

मैंने हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के व्यक्तिगत में  स्पष्ट सलाहों और सुझावों पर विचार किया l  तो मुझे पता चला कि उनकी एक सलाह एक या दो लाइन से अधिक लंबी नहीं होती थी l

उदाहरण:"हे अली! एक बाद एक नज़र मत डालो, पहली नज़र तो आप केलिए है, किन्तु दूसरी नज़र आप केलिए नहीं हैl"

समाप्त हुई, बिल्कुल संक्षिप्त सलाह l

"हे अब्दुल्ला-बिन-उमर! इस दुनिया में ऐसा रहो कि तुम एक अजनबी हो, या एक यात्री हो l"  कहानी खतम, बिल्कुल संक्षिप्त सलाह l

"हे मुआज़!अल्लाह की क़सम मैं तुम से प्यार रखता हूँ! तो प्रत्येक नमाज़ के बाद यह पढ़ना हरगिज़ न भूलना:

اللهم أعني على ذكرك وشكرك وحسن عبادتك .

 

(हे अल्लाह, मेरी मदद कर तुझे याद करने पर, और तेरे धन्यवाद पर और

और अच्छी तरह से तेरी इबादत करने पर l)"

"हे उमर! आप एक मज़बूत व्यक्ति हो तो पत्थर(कअबा के हजरे असवद) के पास हरगिज़ धक्कामुक्की मत करोl"

और हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के बाद उनके मानने वाले बुद्धिमान लोग भी सलाहों को संक्षिप्त करते थे l

हज़रत अबू-हुरैरा-अल्लाह उनसे ख़ुश रहे-की एक बार उस समय के एक कवि फरज्दक़ से मुलाक़ात हुई तो उन्होंने उसे कहा: "प्रिय भतिजा! मैं तो  आपके दोनों पैरों को छोटे छोटे देख रहाहूँ, उनके केलिए स्वर्ग में तो कोई न कोई जगह मिल ही जाएगी l"

मतलब: स्वर्ग में अपने लिए जगह खोजने की कोशिश करो, और अपनी कविता में पवित्र महिलाओं की निंदा मत करो l

हज़रत उमर-अल्लाह से ख़ुश रहे-अपनी मौत की चारपाई पर थे और लोग एक के बाद एक उनके पास आते थे और उनकी बड़ाई और उनके प्रयासों की प्रशंसा करते थे l

इतने में एक जवान आदमी आया और कहा:"ख़ुश होजाइए! हे मोमिनों के हाकिम! आप तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के साथ रहे, और आप तो सब से पहले इस्लाम लानेवालों में शामिल हैं जैसा कि आपको पता है, उसके बाद हमारे नेता चुने गए तो आपने इंसाफ किया, और अब आप शहीद हो रहे हैं l" 

हज़रत उमर ने कहा: "मैं तो केवल इतना चाहता हूँ कि वे बराबर होजाएं न मेरे समर्थन में और न मेरे ख़िलाफ में l" जब वह युवक वापस जाने लगा तो उन्होंने देखा कि उनका परिधान ज़मीन को छु रहा है (पजामा लंबा था)हज़रत उमर-अल्लाह उनसे ख़ुश रहे- ने उस युवा को सलाह देना चाहा l

तो उन्होंने कहा: उस लड़के को मेरे पास वापस बुलाओ l जब युवक आकर उनके सामने खड़ा होगया, तो उन्होंने कहा:"मेरा प्रिय भतीजा! अपने परिधान को ऊपर रखो, उससे तुम्हारा परिधान अधिक पवित्र राहेगा, और उसमें तुम्हारे पालनहार का भी अधिक सम्मान है l"

बस कहानी खतम, संक्षिप्त सलाह, संदेश पहुँच गया l

जहां तक आप से होसके झगड़ने और बात बढ़ाने से बचिए , विशेष रूप से यदि आपको लगे कि आप का संबोधित घमंड दिखा रहा है क्योंकि असल लक्ष्य तो सलाह या सुझाव को उसके पास पहुंचाना है, न कि एक बहस का अखाड़ा शुरू करना l अल्लाह सर्वशक्तिमान ने तर्क की निंदा करते हुए कहा:

ما ضربوه لك إلا جدلاً (الزخرف:58(

 

(उन्होंने यह बात तुम से केवल झगड़ने केलिए कही l)(अज़-ज़ुखरुफ़:८५)

 

और हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-ने कहा:एक जनता मार्ग पाने के बाद नाहीं भटकती है मगर इसलिए कि वे झगड़ों में पड़ गए l

और उन्होंने कहा: स्वर्ग में एक हवेली की मैं गारंटी दे रहा हूँ उसके लिए जिसने झगड़ा छोड़ दिया भले ही वह सही पर था l

कभी कभी लोग किसी विचार को भीतर से मान लेते हैं किन्तु फिर आमदी में घमंड और बड़ाई भी रहती है: 

अल्लाह सर्वशक्तिमान कहता है:

وجحدوا بها واستيقنتها أنفسهم ظلماً وعلوا(النمل:14)

 

(उन्होंने ज़ुल्म और सरकश से उनका इनकार कर दिया l हालांकि उनके जी को उनका विश्वास हो चुका था l) (अन-नम्ल:१४)

आपका असल मक़सद तो यही है कि उसे अपनी ग़लती के बारे में पता चल जाए, ताकि भविष्य में वह उस ग़लती से बचे, और आपका उद्देश्य तो विजयी होना है ही नहीं, और न आप दोनों किसी कुश्ती के अखाड़े में हैं l

एक बार हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो- हज़रत अली और फातिमा-अल्लाह उन दोनों से ख़ुश रहे- के पास रात में आए, और उनसे कहा: क्या तुम दोनों नमाज़ नहीं पढ़ोगे? मतलब: क्या तुम दोनों रात में उठ कर नमाज़ नहीं पढ़ोगे?

तो हज़रत अली ने कहा:हमारी आत्मा तो अल्लाह के हाथ में हैं, जब भी

वह जगा देता है हम उठ जाते हैं l

तो हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-वहाँ से लौटने लगे और अपने हाथों को अपने जांघों पर मारे और बोले: मनुष्य बहुत ही झगड़ालू है l 

और कभी कभी, जिसको सलाह दे रहे हैं कुछ बहाना भी बताएगा वास्तव में वह कोई ठोस कारण तो नहीं बन सकता है किन्तु ग़लती करनेवाला केवल अपनी इज्ज़त बचाने केलिए कह देता है, तो ज़रा नरम रहिए, और बहाना को स्वीकार कर लीजिए, कठोर मत बनिए l

सलाह देते समय उसकेलिए सारे दरवाज़ों को बिल्कुल बंद मत कीजिए बल्कि कुछ दरवाज़ा खुला रहने दीजिए, भले ही वह कोई ग़लत बात कर दे, आप उसकी ग़लती को एक ऐसे ढंग से सुधारिए कि उसको एहसास भी न हो l आप उसकी बुद्धि और साहस की बड़ाई भी कीजिए, और फिर "किन्तु" से शुरू कीजिए और यदि उसकी बात ग़लत है तो उसकी ग़लती को बताइए और उसकी बात को काट दीजिए l

एक विचार l  

बिल्कुल संक्षिप्त बात में ग़लती बताइए, लेक्चर मत दीजिए l

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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