यदि मैंने इस्लाम को ठुकरा दिया, तो मेरा क्या-क्या नुक़सान होगा?
इन्सान सबसे बड़े ज्ञान अर्थात अल्लाह के ज्ञान और उसके परिचय से हाथ धो लेगा। वह अल्लाह पर ईमान की दौलत से वंचित हो जाएगा। उस ईमान की दौलत से, जो इन्सान को दुनिया में सुरक्षा एवं शांति तथा आख़िरत में कभी न ख़त्म होने वाली नेमतें प्रदान करता है।
इन्सान लोगों के लिए अल्लाह की उतारी हुई महानतम किताब की शिक्षाओं से अवगत होने और उसपर ईमान लाने के सौभाग्य से वंचित हो जाएगा।
इन्सान अल्लाह के नबियों पर ईमान और जन्नत में उनकी संगति से वंचित रह जाएगा। उसे जहन्नम की आग में शैतानों, अपराधियों तथा अत्याचारियों के साथ जलना पड़ेगा। स्थान भी बुरा और साथी भी बुरे।
एक अन्य स्थान में कहा है :
قُلْ إِنَّ الْخَاسِرِينَ الَّذِينَ خَسِرُوا أَنْفُسَهُمْ وَأَهْلِيهِمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ أَلا ذَلِكَ هُوَ الْخُسْرَانُ الْمُبِينُ (15) (आप कह दें : निःसंदेह वास्तविक घाटे में पड़ने वाले तो वे हैं, जिन्होंने क़यामत के दिन खुद को तथा अपने घर वालों को घाटे में डाला। सुन लो! यही खुला घाटा है।لَهُمْ مِنْ فَوْقِهِمْ ظُلَلٌ مِنَ النَّارِ وَمِنْ تَحْتِهِمْ ظُلَلٌ ذَلِكَ يُخَوِّفُ اللَّهُ بِهِ عِبَادَهُ يَا عِبَادِ فَاتَّقُونِ } . उनके लिए उनके ऊपर से आग के छत्र होंगे तथा उनके नीचे से भी छत्र होंगे। यही वह चीज़ है, जिससे अल्लाह अपने बंदों को डराता है। ऐ मेरे बंदो! अतः तुम मुझसे डरो।)
[39 : 15, 16]