विनम्रता और सज्जनता
एक बेहद ताक़तवर और हमेशा रहनेवाले अल्लाह को मानने का नतीजा यह होता है कि इन्सान अपनी ताक़त को उसकी ताक़त के सामने कम और अस्थायी समझने लगता है। इसका असर यह होता है कि ऐसा इन्सान जान लेता है कि अल्लाह कमज़ोर का भी साथी है। इसका नतीजा यह निकलता है कि हक़ के रास्ते में वह कमज़ोर को ताक़तवर और ताक़तवर को कमज़ोर समझने लगता है और न्याय और इन्साफ़ की दृष्टि से काम करता है। इस तरह समाज से अत्याचार घटता है, बल्कि अत्याचार का ख़ात्मा हो जाता है और इन्सान में विनम्रता पैदा होती है। लोग अत्याचार इसलिए करते हैं कि वे ख़ुद को बहुत ताक़तवर और अपनी ताक़त को हमेशा रहनेवाली समझने लगते हैं।