अल्लाह की चेतना
एकेश्वरवाद का माननेवाला यह मानता है कि अल्लाह का अस्तित्व है और वह सब कुछ देख और सुन रहा है। यह एहसास उसे सारी बुराइयों से बचा लेता है और उसे हर तरह की अच्छाइयां करने के लिए उभारता है। ऐसा इन्सान अपने हर वादे को अल्लाह से किया हुआ वादा (Commitment) जानता और मानता है ऐसा इन्सान अपनी कथनी और करनी में पूरा उतरने की कोशिश करता है, ऐसा इन्सान लोगों का पूरा-पूरा हक़ अदा करनेवाला बनता है, जिससे समाज में आपसी विश्वास (Mutual trust) और सामाजिक न्याय (Social Justice) और शुभेच्छा (Well-wishing) पैदा होती है।
अल्लाह के, साथ होने (Presence of God) का एहसास इन्सान को हर समय होशियार और सचेत (Alert) रखता है। अल्लाह हर चीज़ को जानता है, यह एहसास इन्सान के मामलों को बदल देता है। आज दुनिया में जो संकट या समस्या (Crisis) नज़र आती है, उसका कारण कहीं अत्याचार है और कहीं अत्याचार की प्रतिक्रिया—कभी ताक़तवर की तरफ़ से और कभी कमज़ोर की तरफ़ से।
अल्लाह के होने का एहसास इन्सान को न्याय और अन्याय के वर्गों में सोचना सिखाता है अर्थात् न्याय क्या है और अन्याय क्या, इससे इन्सान को यह एहसास अच्छी तरह वाक़िफ़ कराता है, न कि मेरा लाभ और मेरी हानि, मेरी पसन्द और मेरी नापसन्द के वर्गों में।
आज दुनिया शान्ति और सलामती की बात करती है, न्याय और इन्साफ़ की नहीं, जबकि शान्ति और सलामती नतीजा है न्याय और इन्साफ़ का। सिर्फ़ एकेश्वरवाद (तौहीद) का एहसास ही इन्सान को न्याय और इन्साफ़ करने वाला बनाए रखता है और हमेशा बनाए रख सकता है।