अल्लाह तआला को गाली देने का हुक्म
इस्लाम के अनुयायियों का इस बारे में कोर्इ मतभेद नहीं कि अल्लाह तआला को गाली देना (बुराई कहना) कुफ्र (अधर्म) है, और अल्लाह सर्वशक्तिमान को गाली देनेवाला क़त्ल कर दिया जायेगा। उन्हों ने केवल उसकी तौबा के स्वीकार किए जाने के संबंध में मतभेद किया है, और क्या -यदि उसने तौबा कर लिया है तो - उसकी तौबा उसे क़त्ल से बचा लेगी या नहीं ? इस बारे में विद्वानों के दो मश्हूर कथन हैं।
अल्लाह को गाली देना और मज़ाक़ उड़ाना सबसे बड़ा कष्ट है,
अल्लाह तआला का फरामान है
जो लोग अल्लाह और उसके पैगंबर को तकलीफ (कष्ट) पहुँचाते हैं, उनपर दुनिया व आखिरत में अल्लाह की फटकार (लानत) है, और उसने उनके लिए अपमानित करनेवाला अज़ाब (यातना) तैयार किया है। और जो लोग र्इमान वाले पुरूषों और र्इमान वाली महिलाओं को कष्ट पहुँचाते हैं बिना किसी (अपराध) के जो उनसे हुआ हो, तो उन्हों ने बुहतान (आरोप) और खुले गुनाह का बोझ उठाया।
(सूरतुल अहज़ाब : 57 - 58)
अल्लाह को कष्ट पहुँचाने का मतलब अल्लाह सर्वशक्तिमान को हानि पहुँचाना नहीं है, क्योंकि कष्ट के दो प्रकार हैं : एक कष्ट वह है जो हानि पहुँचाता है, और एक कष्ट वह है जो हानि नहीं पहुँचाता है, और अल्लाह तआला को कोर्इ चीज़ हानि नहीं पहुँचा सकती है !
चुनाँचे हदीसे क़ुद्सी में है कि अल्लाह तआला ने फरमाया :
हे मेरे बन्दो! तुम मुझे हानि पहुँचाने तक नहीं पहुँच सकते कि तुम मुझे हानि पहुँचाओ।
(हदीस संख्या : 2577)
$ अल्लाह तआला ने उस व्यक्ति पर दुनिया व आखिरत में लानत (धिक्कार) की है जो उसे तकलीफ (कष्ट) पहुँचाता है। और लानत का मतलब है बंदे को रहमत (दया) से दूर कर देना, इस आयत से बंदे को दोनों रहमतों ; दुनिया की रहमत और आखिरत की रहमत से दूर कर दिए जाने का पता चलता है, और दोनों रहमतों से वही व्यक्ति दूर किया जाता है जो अल्लाह के साथ कुफ्र करनेवाला हो ! और यह तथ्य इस बात से उजागर हो जाता है कि अल्लाह तआला ने इसके बाद र्इमान वाले पुरूषों और र्इमान वाली महिलाओं को कष्ट पहुँचाने वालों का उल्लेख किया है तो उस में इस बात का उल्लेख नहीं किया है कि उस ने दुनिया व आखिरत दोनों में उनपर लानत की है ; क्योंकि लोगों को मात्र उनके दूसरों को गाली, लानत और आरोप के द्वारा कष्ट पहुँचाने से काफिर नहीं ठहराया जा सकता, बल्कि वह बुहतान (झूठा आरोप) और खुला गुनाह है, यदि उसपर कोर्इ प्रमाण न हो।
फिर अल्लाह तआला ने यह उल्लेख किया है उसने उसे कष्ट पहुँचाने वाले के लिए (अपमानित करने वाला अज़ाब) (सूरतुल अहज़ाब : 57) तैयार किया है, और अल्लाह तआला ने अपमानित करने वाले अज़ाब का क़ुर्आन करीम में केवल अल्लाह सर्वशक्तिमान के साथ कुफ्र करने वालों के संबंध में किया है।
$ अल्लाह तआला को गाली देना, हर कुफ्र से बढ़कर कुफ्र है, वह मूर्तियों की पूजा करनेवालों के कुफ्र से बढ़कर है, क्योंकि मूर्तियों की पूजा करने वालों ने पत्थरों का सम्मान, अल्लाह तआला का सम्मान करने के कारण किया है ! तो उन्हों ने अल्लाह के पद व महिमा को गिराकर उसे पत्थरों के बराबर नहीं किया है, बल्कि उन्हों ने पत्थरों के पद को ऊँचा कर दिया है यहाँ तक उन्हें अल्लाह के बराबर कर दिया है, इसीलिए अनेकेश्वरवादी (मुशरेकीन) नरक में प्रवेश करने के बाद कहेंगे :
अल्लाह की क़सम ! हम तो खुली गुमराही (गलती) में थे जबकि तुम्हें सर्वसंसार के पालनहार के बराबर ठहराते थे।
सूरतुश-शुअरा : 97 - 98
इन लोगों ने पत्थर को ऊँचा कर दिया है ताकि वह अल्लाह के बराबर हो जाए, अल्लाह तआला के पद व महिमा को गिराया नहीं है कि वह पत्थर के बराबर हो जाए ! तो उनका पत्थर का सम्मान करना उनके गुमान में अल्लाह का सम्मान करने से है ! जबकि जिसने अल्लाह को गाली दिया और बुरा कहा है, उसने अल्लाह तआला को गाली देने के कारण उसे उसके पद से गिरा दिया है ताकि पत्थर से कमतर हो जाए, जबकि मुशरिक लोग (अनेकेश्वरवादी) अपने पूज्यों को हँसी मज़ाक़ में भी गाली नहीं देते हैं ; क्योंकि वे उनका आदर व सम्मान करते हैं ! इसीलिए वे उनकी बुरार्इ करने वालों को बुरा भला कहते हैं!
अल्लाह तआला ने अपने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर अपना यह फरमान अवतरित किया है
और जो अल्लाह को छोड़कर दूसरों को पुकारते हैं उन को गाली न दो, नहीं तो वे अनजाने में दुश्मनी के तौर पर अल्लाह को गाली देंगे।
सूरतुल अन्आम : 108
जबकि मुशरिक लोग काफिर (अधर्म) हैं, लेकिन अल्लाह तआला ने अपने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को उनकी मूर्तियों को बुरा कहने से मना किया है, ताकि ऐसा न हो कि वे अपने हठ के कारण अपने कुफ्र से बढ़कर कुफ्र न कर बैठें, और वह मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पूज्य को गाली देना (बुराई करना) है।
$ अल्लाह तआला को गाली देने और बुरा भला कहने के कुछ शब्द इल्हाद (नास्तिकता) से भी बढ़कर हैं ; क्योंकि मुलहिद (नास्तिक) ने सृष्टा और पालनकर्ता के अस्तित्व को नकारा है, जबकि उसकी हालत यह कहती है कि : यदि मैं उसे साबित करता तो उसका अवश्य सम्मान करता !
परंतु जो व्यक्ति अल्लाह पर र्इमान रखने का गुमान करता है ; तो वह अपने पालनहार को साबित मानता है और उसे गाली देता है, और यह स्पष्ट रूप से बड़ा हठ और चुनौती वाला है !!
किसी देश में मूर्तियाँ लगाकर उनके चारों ओर परिक्रमा करना, उन्हें सज्दा करना और उनसे बर्कत लेना अल्लाह के निकट ; उस देश के क्लबों, सड़कों, बाज़ारों और परिषदों (बैठकों) में अल्लाह को गाली देने के परिचलित होने से कमतर और आसान है ; क्योंकि अल्लाह सर्वशक्तिमान को गाली देने का प्रचलन, अल्लाह सर्वशक्तिमान के साथ मूर्तियों को साझी ठहराने से अधिक गंभीर है, जबकि दोनों ही काम कुफ्र हैं, परंतु मुशरिक अल्लाह को महान समझता है, जबकि गाली देनेवाला अल्लाह को कमतर (तुच्छ) समझता है ! अल्लाह सर्वशक्तिमान इससे बुलंद व सर्वोच्च है।
$ किसी देश में अल्लाह तआला को गाली देना और उसका चर्चित व प्रचलित होना, उसमें व्यभिचार को हलाल समझने और उसे वैद्ध ठहराने से बढ़कर है, तथा लूत अलैहिस्सलाम की ज़ाति के लोगों की बुरार्इ और उसे वैद्ध ठहरा लेने से भी बढ़कर है, क्योंकि बुरार्इयों को वैद्ध ठहराने का कुफ्र ऐसा कुफ्र है जिसका कारण अल्लाह के आसमानी विधानों में से एक विधान का इनकार करना और अल्लाह के आदेशों में से एक आदेश का अवमान व अपमान करना है, लेकिन जहाँ तक गाली देने का संबंध है तो वह ऐसा कुफ्र है जिसका कारण स्वयं विधाता के साथ कुफ्र करना है, और स्वयं विधाता के साथ कुफ्र करने का आवश्यक मतलब उसके सभी विधानों का इनकार करना और उनका अपमान करना होता है, और यह बहुत गंभीर और भयंकर है, जबकि दोनों ही काम कुफ्र हैं ; परंतु कुफ्र के विभिन्न वर्ग हैं, जिस तरह कि र्इमान कर्इ दर्जे (पद) हैं।
$ जब अल्लाह तआला ने र्इसार्इयों के कुफ्र, और उनके अल्लाह सर्वशक्तिमान की ओर बेटे की निस्बत करके उसके साथ अनुचित व्यवहार करने का उललेख किया, तो उनके अपराध का उल्लेख किया है और उसके प्रभाव का वर्णन, मूर्तिपूजकों और सितारों की पूजा करनेवालों के शिर्क का वर्णन करने से, बढ़कर किया है, अल्लाह तआला ने फरमाया :
और उनका कहना तो यह है कि (अल्लाह) रहमान ने भी औलाद बना रखी है। नि:संदेह तुम बहुत (बुरी और) भारी चीज़ लाये हो। क़रीब है कि इस कथन के कारण आकाश फट जायें और धरती में दरार हो जाये और पहाड़ कण-कण हो जायें कि वे रहमान की औलाद साबित करने बैठे हैं। और रहमान के यह लायक़ नहीं कि वह औलाद रखे। आकाशों और धरती में जो भी हैं सब अल्लाह के गुलाम बनकर ही आने वाले हैं। उन सब को उस ने घेर रखा है और सब की पूरी तरह गिन्ती भी कर रखी है। ये सारे के सारे क़ियामत के दिन अकेले उसके सामने हाज़िर होने वाले हैं।
सूरत मरियम : 88 - 95
क्योंकि संतान की निस्बत करना अल्लाह सर्वशक्तिमान के अंदर कमी निकालना, और उसकी बुराई करना है। यह इस चीज़ से बढ़कर है कि यदि उन्हों ने अल्लाह की इबादत की होती और उसके साथ किसी दूसरो को साझी ठहराया होता, तो वे सृष्टि (मखलूक़) को ऊँचा कर अल्लाह का आदर व सम्मान करने के समान उसकी सम्मान करने वाले होते ; इसलिए कि संतान की निस्बत करना खालिक़ को नीचे गिराना है ताकि वह मख्लूक़ के समान हो जाए, जबकि मूर्ति की पूजा करना मख्लूक को ऊँचा करना है ताकि वह खालिक़ के समान हो जाए, और खालिक़ के पद को गिराना मख्लूक़ के पद को ऊँचा करने से बढ़कर (गंभीर) और सख्त कुफ्र वाला है।
गाली देना और बुराई करना ज़ाहिरी व बातिनी (प्रोक्ष व प्रत्यक्ष) र्इमान के विरूद्ध है ; वह दिल के कथन के विरूद्ध है, और वह अल्लाह की पुष्टि करना, उसके अस्तित्व पर और उसके उपासना का अधिकारी होने पर विश्वास रखना है। इसी तरह वह दिल के कार्य के भी विरूद्ध है, और वह अल्लाह की मोहब्बत और उसका आदर व सम्मान है। अत: किसी का सम्मान करने का दावा स्वीकार नहीं किया जायेगा जबकि आप उसे गाली दे रहे हों ; जैसे कि अल्लाह का सम्मान और माता पिता का आदर। अतः जो व्यक्ति अपने माता पिता का आदर करने का दावा करता है हालाँकि वह उन्हें गाली देता है और उनका मज़ाक उड़ाता है, तो वह अपने दावा में झूठा है !
इसी तरह अल्लाह सर्वशक्तिमान को गाली देना और उसकी बुराई करना ज़ाहिरी (प्रत्यक्ष) र्इमान के विरूद्ध व विपरीत है और वह कथनी और करनी दोनों को सम्मिलित है।