इस्लामी युद्ध-नियम व संधि की हैसियत
इस्लाम ने इसके विपरीत जंग के जो शिष्टाचार बताए हैं, उनकी सही हैसियत क़ानून की है, क्योंकि वे मुसलमानों के लिए अल्लाह और रसूल के दिए हुए आदेश हैं, जिनकी पाबन्दी हम हर हाल में करेंगे, चाहे हमारा दुश्मन कुछ भी करता रहे। अब यह देखना हर इल्म रखने वाले का काम है कि जो जंगी-नियम चौदह सौ साल पहले तय किए गए थे, पश्चिम के लोगों ने उसकी नक़ल की है या नहीं, और नक़ल करके भी वह जंग की सभ्य मर्यादाओं के उस दर्जे तक पहुंच सका है या नहीं, जिस पर इस्लाम ने हमें पहुंचाया था। पश्चिम वाले अक्सर यह दावा किया करते हैं कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने सब कुछ यहूदियों और ईसाइयों से ले लिया है। इस लिए बाइबल को भी पढ़ डालिए, ताकि आपको मालूम हो जाए कि सभ्यता के इन दावेदारों का पवित्र ग्रंथ जंग के किन तरीक़ों की हिदायत देता है। (इस उद्देश्य के लिए बाइबल की किताब निर्गमन (Exodus) पाठ 34, किताब गिनती (Numbers) पाठ 31, किताब व्यवस्था-विवरण (Deuteronomy) पाठ 30,7,2 और किताब यशूअ (Joseph) पाठ 6,8 को पढ़ लेना काफ़ी है।)
शुरू ही में यह बात भी समझ लीजिए कि इस्लाम में इन्सान के इन्सान होने की हैसियत से जो अधिकार बयान किए गए हैं, उनको दोहराने की अब ज़रूरत नहीं है। इनको दिमाग़ में रखते हुए देखिए कि इस्लाम के दुश्मन के क्या हुक़ूक़ इस्लाम में मुक़र्र किए गए हैं।