इसलाम में इबादत की शर्तें -2
दूसरी शर्तः यह है कि इबादत वर्ग एवं जाति के अंदर शरीअत के अनुकूल हो, जैसे कि कोई मनुष्य घोड़े की कुर्बानी करे, यदि कोई मनुष्य घोड़े की कुर्बानी करता है तो वह उसके कारण वर्ग एवं जाति के अंदर शरीअत का विरोध करने वाला है। (क्योंकि चौपायों की ही क़ुर्बानी करना जाइज़ है और वे जानवरः (ऊँट, गाय तथा बकरी हैं)
तीसरी शर्तः यह है कि इबादत मात्रा में शरीअत के अनुकूल हो। अगर कोई मनुष्य कहे कि वह जुहर की नमाज छह रकअत पढ़ता है तो क्या उसकी यह इबादत शरीअत के अनुकूल है ॽ कदापि नहीं, क्योंकि उसकी यह नमाज मात्रा में शरीअत के अनुकूल नहीं है। इसी प्रकार अगर कोई मनुष्य फर्ज़ नमाज के बाद “सूब्हानल्लाह, अलहम्दुलिल्लाह, अल्लाहु अक्बर” 35 बार पढ़ता है तो क्या यह सही है ॽ इसका उत्तर यह है किः हम कहेंगे कि अगर इस संख्या के द्वारा आपका मक़सद अल्लाह की इबादत करना है तो आप ने गलत किया है। और यदि आप ने पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के द्वारा निर्धारित संख्या पर वृद्धि का इरादा किया हैए किंतु आप इस बात पर अक़ीदा (विश्वास) रखते है कि धर्म संगत केवल तैंतीस की संख्या है तो इसमें कोइ बात नहीं है। क्योंकि आपने उसे उसके द्वारा उपासना करने से अलग कर दिया है।
चैथी शर्तः यह है कि इबादत अपनी कैफियत (ढंग और तरीक़े) में शरीअत के अनुकूल हो। अगर किसी मनुष्य ने इबादत को उसके वर्ग, मात्रा, तथा उस के सबब (कारण) के अनुसार अदा किया है, मगर उसकी कैफियत में शरीअत का विरोध किया है, तो यह (उसकी नमाज़) सही नहीं होगी। इसका उदाहरण यह है किः किसी मनुष्य ने छोटा हदस किया (अर्थात उसका वुज़ू टूट गट), और उसने वुजू किया, परंतु उसने सबसे पहले अपने पैरों को धोया, फिर अपने सिर का मसह किया, फिर अपने दोनों हाथों को धोया, फिर अपने चेहरे को धोया, तो क्या ऐसे मनुष्य का वुजू सही होगा ॽ कदापि नहीं, क्येंकि उस ने वुजू के तरीके (कैफियत और ढंग) में शरीअत की मुखालफत की है।
पाँचवी शर्तः यह है कि इबादत को समय एवं वक़्त में शरीअत के अनुकूल होना चाहिए। उदाहरण के तौर पर कोई मनुष्य रमजान का रोजा, शबान या शव्वाल में रखे, या जुहर की नमाज ज़वाल (सूर्य ढलने) से पहले या हर चीज़ का साया उसके बराबर हो जाने के बाद पढ़ेए क्योंकि यदि उसने सूरज ढलने से पहले नमाज़ पढ़ी है तो उसने समय से पहले नमाज़ पढ़ ली, और यदि हर चीज़ का साया उसके बराबर होने के बाद नमाज़ पढ़ी है तो उसने समय निकलने के बाद नमाज़ पढ़ी, अतः उसकी नमाज नहीं होगी।
इसीलि हम कहते हैं, अगर कोई मनुष्य अकारण किसी नमाज़ को जान बूझ कर छोड़ दे यहाँ तक कि उसका समय निकल जाये , तो उसकी नमाज़ उससे स्वीकार नहीं की जायेगी चाहे वह उस नमाज़ को हजार बार पढ़ता रहे। यहाँ पर हम इस अध्याय में एक महत्वपूर्ण नियम वर्णन करते हैं और वह यह कि हर वह इबादत जिसका कोई समय निर्धारित है यदि मनुष्य उसे बिना किसी कारण उसके समय से निकाल देता हैए तो वह इबादत स्वीकार नहीं होगी बल्कि वह रद्द कर दी जायेगी।
इसकी दलील आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा की हदीस है किः “अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः” “जिस मनुष्य ने भी कोई ऐसा काम किया जिस पर हमारा आदेश नहीं हैए तो उसे रद्द कर दिया जायेगा।“
छठी शर्तः यह है कि इबादत उसके स्थान में शरीअत के अनुकूल हो। अतः अगर कोई मनुष्य अरफा के दिन, मुज़दलिफा में ठहरे, तो उसका वकूफ (ठहरना) सही नहीं होगा। क्येंकि यह इबादत उसके स्थान में शरीअत के अनुकूल नहीं है। इसी प्रकार उदाहरण के तौर पर यदि कोई मनुष्य अपने घर में एतिकाफ करे, तो उसका एतिकाफ सही नहीं होगा य क्योंकि एतिकाफ की जगह मस्जिद है। इसी कारण महिला के लिए अपने घर में एतिकाफ करना सही नहीं हैं ; क्योंकि वह एतिकाफ करने की जगह नहीं है। और जब अल्लाह के नबी सल्ललाहु अलैहे व सल्लम ने अपनी कुछ बीवियों को देखा कि उन्हों ने मस्जिद में अपने लिए खेमा लगा लिया है, तो आप ने खेमों को उखाड़ने और एतिकाफ को स्थगित करने का आदेश दिया। और आपने उन्हें अपने घरों में एतिकाफ करने का सुझाव नही दिया। यह इस बात की दलील है कि औरत के लिए अपने घर के अंदर एतिकाफ में बैठना जाइज़ नहीं है क्योंकि यह स्थान में शरीअत के विरुध है।
यह छह तत्व हैं जिनके इबादत के अंदर पाये जाये बिना अनुसरण परिपूर्ण नहीं हो सकताः
1. इबादत का सबब (कारण)।
2. इबादत की जाति (वर्गए प्रकार)।
3. इबादत की मात्रा।
4. इबादत की कैफियत (ढंग एवं तरीक़ा)।
5. इबादत का समय।
6. इबादत का स्थान।