उन महिलाओं के लिए नसीहत जो अपना ढेर सारा समय खाना बनाने में बिताती हैं
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
मुसलमान को, अपने समय को गनीमत समझने और उसे नष्ट न करने का इच्छुक और अभिलाषी होना चाहिए। बहुत सारी औरतों का समय - जैसाकि प्रश्न में वर्णित हुआ है - विभिन्न प्रकार के खाने तैयार करने मे बर्बाद हो जाता है और वे इसमें कई कई घन्टे गुज़ार देती हैं।
ईमान वाले आदमी को चाहिए कि वह अपना खाना कम करे और उसका मक़सद मनपसंद खानों का आनंद लेना न हो, भले ही वे जायज़ हों।
उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु अपने बेटे अब्दुल्लाह के पास आए, तो उन्हें गोश्त खाते हुए पाया। इसपर उन्हों ने फरमाया : यह गोश्त क्या है! तो उन्हों ने कहा: मुझे इसकी इच्छा हुई। उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया : क्या जब भी तुम्हें किसी चीज़ की इच्छा होगी उसे खाओ गे! आदमी की फुज़ूलखर्ची के लिए यह काफी है कि उसे जिस चीज़ की भी इच्छा हो उसे खाता फिरे!
अतः मुसलमान को चाहिए कि अपनी ज़रूरत भर के खाने पर निर्भर करे, उसमें विस्तार से काम न ले।
फिर वह समय जो मुसलमान औरत खाना बनाने में बिताती है, उसके लिए उससे अपने काम के दौरान अल्लाह के ज़िक्र या क़ुअरान पढ़ने में लाभ उठाना संभव है। जबकि खाने की तैयारी में उसका काम, यदि वह उससे अच्छी नीयत करे - और वह अपने पति और अपने बच्चों की सेवा करना है - तो वह आज्ञाकारिता (नेकी) होगी जिस पर उसे सवाब मिलेगा।
शैख अब्दुल अज़ीज़ आलुश्शैख ने फरमाया :
‘‘महिला का अपने घर में सेवा करना अल्लाह की उपासना है, और उसका अपने घर और बाल बच्चों के कर्तव्य को निभाना अल्लाह की उपासना है। इस तरह वह - इन शा अल्लाह - अल्लाह की इबादत में व्यस्त रहती है। उसे चाहिए कि कुछ समय अल्लाह के ज़िक्र के लिए गनीमत समझे, और खाने की तैयारी के समय अल्लाह का ज़िक्र करना जायज़ है। और सभी तारीफें अल्लाह के लिए हैं।’’ अंत हुआ।
मजल्लतुल बुहूस (58/81).