उन्हें क्रिसमस में खाना उपहार में दिया गया तो वे उसके बारे में क्या करें ॽ | जानने अल्लाह

उन्हें क्रिसमस में खाना उपहार में दिया गया तो वे उसके बारे में क्या करें ॽ


Site Team

यदि हमारा पड़ोसी 25 दिसंबर को हमें क्रिसमस का खाना पेश करता है तो हम उसके बारे में क्या करें ॽ क्या हम उस खाने से छुटकारा हासिल कर लें, या उसे नकार दें, भले ही हमारा नकारना उन्हें हमारे प्रति गलतफमी में डालने का कारण बन सकता हो ॽ
अल्लाह तआला आपको अच्छा बदला प्रदान करे।



हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए है।

सर्व प्रथम :

मुसलमान व्यक्ति के लिए काफिरों से उपहार स्वीकार करना, या उन्हें उपहार देना जाइज़ है, विशेष रूप से यदि वे रिश्तेदारों में से हों, इसका प्रमाण निम्नलिखित है :

1- अबू हुमैद अस्साइदी से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : हम ने नबी

सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ युद्ध किया और ऐला के राजा ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को एक सफेद खच्चर उपहार भेंट किया, और आपको एक चादर पहनाया और आपके लिए अपने देश के राज्य (और कर) के लिख दिया।” इसे बुखारी (हदीस संख्याः 2990) ने रिवायत किया है।

2- कसीर बिन अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब से वर्णित है कि उन्हों ने कहा: अब्बास ने कहा : मैं अल्लाह के पैगंबर के साथ हुनैन के युद्ध के दिन उपस्थित था। तो मैं और अबू सुफयान बिन अल-हारिस बिन अब्दुल मुत्तलिब अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को लाज़िम पकड़े रहे, हम आप से अलग नहीं हुए, और अल्लाह के पैगंबर अपने एक सफेद खच्चर पर थे जो उन्हें फर्वा बिन नुफासा अल-जुज़ामी ने उपहार में दिया था। इसे मुस्लिम (हदीस संख्याः 1775) ने रिवायत किया है।

तथा यह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की अनुमति से सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम से और आपके समयकाल में साबित है, चुनांचे अस्मा बिंत अबू बक्र की माँ ने - जबकि वह शिर्क की हालत में थीं - अपनी बेटी का दौरा किया और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अस्मा रज़ियल्लाहु अन्हा के लिए उन के साथ सदव्यवहार करने की अनुमति प्रदान कर दी, तथा यह बात प्रमाणित है कि उमर बिन खत्ताब ने अपने भाई को जो कि मुश्रिक थे एक जोड़ा उपहार में दिया, और यह दोनों हदीसें सहीहैन (बुखारी व मुस्लिम) में हैं।

सारांश यह कि मुसलमान के लिए काफिर को उपहार देना और उसके उपहार को स्वीकार करना जाइज़ है।

दूसरा :

जहाँ तक उनके त्योहारों के उपहार का संबंध है तो उसे उन्हें भेंट करना तथा उसे उनसे क़बूल करना जाइज़ नहीं है, क्योंकि इसमें उनके त्योहारों का सम्मान करना, उन्हें उस पर मान्यता देना, और उनके कुफ्र पर उनका मददगार होना पाया जाता है।

शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह ने फरमाया :

जिसने मुसलमानों को इन त्योहारों में कोई उपहार दिया इस त्योहार के अलावा अन्य सभी वक़्तों में आम आदत का विरोध करते हुए : तो उसके उपहार को क़बूल नहीं किया जायेगा, विशेष रूप से यदि उपहार उन चीज़ों में से है जिनके द्वारा उनकी समानता और छवि अपनाने पर मदद हासिल किया जाता है, उदाहरण के तौर पर क्रिसमस में मोम बत्ती इत्यादि उपहार में देना, या “अल-खमीस अस्सगीर” में, जो उनके रोज़े के अंत में होता है, अंडा, दूध, बकरी उपहार में देना।

इसी तरह इन त्योहारों में किसी मुसलमान व्यक्ति को त्योहार के कारण कोई उपहार भेंट नहीं किया जायेगा, खासकर यदि वह उन चीज़ों में से है जिनके द्वारा उनकी समानता और छवि अपनाने पर मदद लिया जाता है, जैसाकि हम ने अभी उल्लेख किया है।

तथा मुसलमान उस चीज़ को नहीं बेचेगा जिस से मुसलमान लोग उन काफिरों की नकल करने और उनकी छवि अपनाने पर मदद हासिल करते हैं, जैसे- खाना, कपड़ा और इस जैसी चीज़ें, क्योंकि इसके अंदर बुराईयों पर मदद करना पाया जाता है।

“इक़्तिज़ाउस्सिरातिल मुस्तक़ीम” (227).

तथा आप - रहिमहुल्लाह - ने फरमाया :

जहाँ तक मुसलमान के उनके त्योहारों में उन्हें ऐसी चीज़ों के बेचने का संबंध है जिनसे वे अपने त्योहार पर मदद हासिल करते हैं जैसे- खाना, कपड़ा, सुगंध और इनके समान अन्य चीज़ें, या उन्हें ये चीज़ें उपहार में देने का संबंध है : तो इसके अंदर एक प्रकार से उनके हराम (निषिद्ध) त्योहार के मनाने पर उनकी मदद करना पाया जाता है, और वह एक मूल सिद्धांत पर आधारित है, और वह यह है कि उसके लिए काफिरों को अंगूर या जूस बेचना जाइज़ नहीं है जिसे से वे शराब बनाते हों, इसी तरह उन्हें ऐसा हथियार बेचना जाइज़ नहीं है जिस से वे मुसलमानों से लड़ाई करें।

“इक़्तिज़ाउस्सिरातिल मुस्तक़ीम” (299).

तथा इब्नुल क़ैयिम रहिमहुल्लाह ने यहूदियों और ईसाईयों के त्योहारों के बारे में फरमाया :

“जिस तरह कि उनके लिए उसका प्रदर्शन करना जाइज़ नहीं है, तो मुसलमानों के लिए उस पर उनकी मदद करना, उनके साथ उपस्थित होना जाइज़ नहीं है विद्वानों की सर्वसहमति के साथ, तथा चारों इमामों के अनुयायिायों में से फुक़हा ने अपनी पुस्तकों में इस बात को स्पष्ट किया है।

फिर आप रहिमहुल्लाह ने इसके निषेद्ध के बारे में मतों के इमामों और उनके महान लोगों की बातों का वर्णन किया है।

“अहकामों अह्लिजि़्ज़म्मह” (3/1245 - 1250)

तथा प्रश्न संख्या (12666) का उत्तर देखें।

तीसरा :

मुसलमान के लिए अपने धर्म के मामले में लापरवाही करना जाइज़ नहीं है, उसके ऊपर अनिवार्य है कि वह उसके अहकाम का प्रदर्शन करने वाला हो। देखो इन लोगों ने अपने धर्म का ऐलान किया और इस तरह के त्योहारों के द्वारा अपने प्रतीकों का प्रदर्शन किया, अतः हमारे ऊपर अनिवार्य है कि हम उनके उपहारों को नकारने का ऐलान और प्रदर्शन करें, उनके साथ साझी होने और उस पर उनका सहयोग करने से निषेद्ध का प्रदर्शन करें, और यह हमारे धर्म के प्रतीकों में से है।

हम अल्लाह तआला से प्रार्थना करते हैं कि वह हमें अपने दीन के अहकाम की समझ प्रदान करे और उस पर अमल करने तथा उस पर स्थिर रहने की तौफीक़ दे।

और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।
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