किताबों (धर्म-ग्रन्थों) पर र्इमान लाना
यानी इस बात पर विश्वास रखना कि अल्लाह सुब्हानहु व तआला ने अपनी तरफ से अपने पैग़म्बरों पर कुछ आसमानी किताबें उतारी हैं ताकि वे उसे लोगों तक पहुचायें, ये किताबें हक़ और अल्लाह तआला की तौहीद यानी उसे उसकी रूबूबियत, उलूहियत औ नामों और गुणों में एकत्व मानने पर आधारित हैं, अल्लाह तआला का फरमान है : ''बेशक हम ने अपने सन्देष्टाओं को खुली निशानियाँ देकर भेजा और उनके साथ किताब और न्याय (तराज़ू) उतारा ताकि लोग इंसाफ पर बाक़ी रहें।'' (सूरतुल हदीद :25)
मुसलमान के लिए आवश्यक है कि वह क़ुरआन से पहले उतरी हुर्इ सभी आसमानी किताबों पर र्इमान लाए और यह कि वह सब अल्लाह की तरफ से हैं, लेकिन क़ुरआन उतरने के बाद उन पर अमल करने का उस से मुतालबा नहीं किया गया है, क्योंकिवे किताबें एक सीमित समय के लिए और विशिष्ट लोगों के लिए उतरी थीं, उन किताबों में से जिनके नामों का अल्लाह तआला ने अपनी किताब (क़ुरआन) में उल्लेख किया है, निम्नलिखित हैं :
- इब्राहीम और मूसा अलैहिस्सलाम के सहीफे : इन सहीफों में उलिलखित कुछ धार्मिक सिद्धांतों को क़ुरआन में बयान किया गया है, अल्लाह तआला ने फरमाया : ''क्या उसे उस बात की खबर नहीं दी गर्इ जो मूसा (अलैहिस्सलाम) के सहीफे (ग्रन्थ) में थी। और वफादार इब्राहीम के ग्रन्थ में थी? कि कोर्इ मनुष्य किसी दूसरे का बोझ नहीं उठाये गा। और यह कि हर मनुष्य के लिए केवल वही है जिसकी कोशिश स्वयं उसने की। और यह कि बेशक उसकी कोशिश जल्द देखी जाए गी। फिर उसे पूरा-पूरा बदला दिया जाए गा।'' (सूरतुन नज्म : 36-42)
- तौरात : यही वह पवित्र ग्रन्थ है जो मूसा अलैहिस्सलाम पर अवतरित हुआ, अल्लाह ताअला का फरमान है : ''हम ने तौरात नाजि़ल किया है जिस में मार्गदर्शन और प्रकाश है, यहूदियों में इसी तौरात के द्वारा अल्लाह के मानने वाले अंबिया, अल्लाह वाले और ज्ञानी निर्णय करते थे, क्योंकि उन्हें अल्लाह की इस किताब की सुरक्षा का आदेश दिया गया था, और वे इस पर क़ुबूल करने वाले गवाह थे, अब तुम्हें चाहिए कि लोगों से न डरो, बलिक मुझ से डरो, मेरी आयतों को थोड़े-थोड़े दाम पर न बेचो, और जो अल्लाह की उतारी हुर्इ वह्य की बिना पर फैसला न करें वे पूरा और मुकम्मल काफिर हैं।'' (सूरतुल मार्इदा: 44)
क़ुरआन करीम में तौरात में आर्इ हुर्इ कुछ चीज़ों का उल्लेख किया गया है, उन्हीं में से हज़रत पैग़म्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की विशेषतायें जिन्हें वे लोग छुपाने का प्रयास करते हैं जो उन में से हक़ को नही चाहते हैं, अल्लाह तआला का फरमान है : ''मुहम्मद अल्लाह के हज़रत पैग़म्बर हैं और जो लोग उनके साथ हैं काफिरों पर कठोर हैं, आपस में रहम दिल हैं, तू उन्हें देखे गा कि रूकूअ और सज्दे कर रहे हैं, अल्लाह तआला की कृपा (फज़्ल) और खुशी की कामना में हैं, उनका निशान उनके मुँह पर सज्दों के असर से है, उनका यही गुण (उदाहरण) तौरात में है।'' (सूरतुल फ़त्ह :29)
इसी तरह क़ुरआन करीम ने तौरात में वर्णित कुछ धार्मिक अहकाम का भी उल्लेख किया है, अल्लाह तआला का फरमान है :
''और हम ने तौरात में यहूदियों पर यह आदेश फर्ज़ कर दिया था कि जान के बदले जान और आख के बदले आख और नाक के बदले नाक और कान के बदले कान और दात के बदले दात और जख़्म के बदले (वैसा ही) बराबर का बदला (जख़्म) है फिर जो (मज़लूम ज़ालिम की) ख़्ता माफ़ कर दे तो ये उसके गुनाहों का कफ़्फ़ारा हो जाए गा और जो शख़्स ख़ुदा की नाजि़ल की हुई (किताब) के मुवाफि़क़ आदेश न दे तो ऐसे ही लोग ज़ालिम हैं। '' (सूरतुल मार्इदा :45)
- ज़बूर :वह किताब है जो दाऊद अलैहिस्सलाम पर उतरी, अल्लाह तआला का फरमान है : ''और हम ने दाऊद को ज़बूर अता किया। '' (सूरतुनिनसा :163)
- इन्जील : वह पवित्र ग्रन्थ है जिसे अल्लाह तआला ने र्इसा अलैहिस्सलाम पर अवतरित किया, अल्लाह तआला का फरमान है: ''और हम ने उन्हीं पैग़म्बरों के पीछे मरियम के बेटे र्इसा को भेजा जो इस किताब तौरात की भी तस्दीक़ करते थे जो उनके सामने (पहले से) मौजूद थी और हमने उनको इन्जील (भी) अता की जिसमें (लोगों के लिए हर तरह की) हिदायत थी और नूर (र्इमान) और वह इस किताब तौरात की जो वक़्ते नुज़ूले इन्जील (पहले से) मौजूद थी तसदीक़ करने वाली और परहेज़गारों की हिदायत व नसीहत थी। (सूरतुल मार्इदा :46)
क़ुरआन करीम ने तौरात व इंजील में वर्णित कुछ बातों का उल्लेख किया है, उन्हीं में से मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के आगमन की शुभ सूचना है, इसलिए अल्लाह तआला ने इरशाद फरमाया :
''मेरी रहमत -दया- प्रत्येक चीज़ को समिमलित है। तो वह रहमत उन लेागों के लिए अवश्य लिखूंगा जो अल्लाह से डरते हैं और ज़कात -अनिवार्य धार्मिक दान- देते हैं और जो लोग हमारी आयतों पर र्इमान लाते हैं। जो लोग ऐसे उम्मी (जो पढ़ना-लिखना नहीं जानते थे ) नबी (पैग़म्बर ) की पैरवी (अनुसरण ) करते हैं जिन को वह लोग अपने पास तौरात व इनजील में लिखा हुआ पाते हैं। वह उनको अच्छी (नेक) बातों का आदेश देते हैं और बुरी बातों से मनाही करते हैं और पवित्र चीज़ों को हलाल (वैद्व) बताते हैं और अपवित्र चीज़ों को उन पर हराम (अवैद्व, वर्जित) बताते हैं, और उन लोगों पर जो बोझ और तौक़ थे उनको दूर करते हैं। '' (सूरतुल आराफ: 156-157)
इसी तरह अल्लाह के धर्म को सर्वोच्च करने के लिए अल्लाह के रास्ते में जिहाद करने पर उभारा गया है, इसलिए अल्लाह के रास्ते में जिहाद करना केवल इस्लाम में ही नहीं है बलिक इस से पूर्व की आसमानी शरीअतों में भी आया है, अल्लाह तआला का फरमान है :
''बेशक अल्लाह ने मुसलमानों से उनकी जानों और मालों को जन्नत के बदले खरीद लिया है, वह अल्लाह की राह में लड़ते हैं जिसमें क़त्ल करते हैं और क़त्ल होते हैं, उस पर सच्चा वादा है तौरात, इंजील और क़ुरआन में। और अल्लाह से अधिक अपने वादे का पालन कौन कर सकता है? इसलिए तुम अपने इस बेचने पर जो कर लिए हो खुश हो जाओ, और यह बड़ी कामयाबी है। '' (सूरतुत्तौबा : 111)
- क़ुरआन करीम : इस बात पर विश्वास रखना अनिवार्य है कि वह अललाह का कलाम है जिसे के साथ जिबरील अलैहिस्सलाम स्पष्ट (शुद्ध) अरबी भाषा में मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर उतरे हैं, अल्लाह ताल का फरमान है : ''इसे अमानतदार फरिश्ता (यानी जिबरील अलैहिस्सलाम) लेकर आया है। आप के दिल पर (नाजि़ल हुआ है ) कि आप सावधान (आगाह) कर देने वालों में से हो जायें। साफ अरबी भाषा में। '' (सूरतुश्शुअरा :193-195)