क्या यह कहना जायज़ है कि हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु की मृत्यु शहादत की हालत में हुई थी ॽ
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
जी हाँ, हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु शहादत की हालत में क़त्ल हुए थे। इसकी पृष्ठिभूमि यह है कि ईराक़ (कूफा) वालों ने उनके पास पत्र लिखा कि वह निकल कर उनके पास आएं ताकि वे लोग इमारत (राज्य) पर उनसे बैअत करें, यह घटना मुआविय रज़ियल्लाहु अन्हु की मृत्यु और उनके बेटे यज़ीद के शासन संभालने के बाद घटी थी।
फिर जब यज़ीद बिन मुआविया की तरफ से उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद कूफा का गवर्नर बन गया, और उनकी तरफ हुसैन के भेजे हुए संदेश्वाहक मुस्लिम बिन अक़ील को क़त्ल कर दिया, तो कूफा वाले लोग बदल कर हुसैन के विपरीत हो गए। चुनाँचे ईराक़ वालों के दिल हुसैन के साथ थे परंतु उनकी तलवारें उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद के साथ थीं।
चुनाँचे हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु उनकी ओर निकल पड़े जबकि उन्हें मुस्लिम बिन अक़ील के मारे जाने की जानकारी नहीं थी और न ही वह इस बात को जानते थे कि कूफा वालों के दिल उनके प्रति बदल चुके हैं।
बु़द्धि और विचार वालों और उनसे मोहब्बत रखने वालों ने उन्हें इराक़ की तरफ न निकलने की सलाह दी, किंतु उन्हों ने उनकी ओर निकलने पर ज़िद किया।
जिन लोगों ने उन्हें इसका मश्वरा दिया था उनमें : अब्दुल्लाह बिन अब्बास, अब्दुललाह बिन उमर, अबू सईद खुदरी, जाबिर बिन अब्दुल्लाह, मिस्वर बिन मख्रमा और अब्दुललाह बिन ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हुम अजमईन हैं।
हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु इराक़ की ओर चल पड़े, और कर्बला में पड़ाव किया, और उन्हें पता चल गया कि इराक़ वाले उनके प्रति बदल चुके हैं, तो हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु ने उस फौज से जो उनसे लड़ने के लिए आई थी, तीन चीज़ों में से किसी एक का मुतालबा किया : या तो वे लोग उन्हें मक्का वापस जाने के लिए छोड़ दें, या वह यज़ीद बिन मुआवियह के पास चले जाएं, और या तो वह अल्लाह के रास्ते में जिहाद के लिए सीमाओं पर चले जाएं।
तो उन्हों ने नहीं माना सिवाय इसके कि वह उन्हें समर्पण कर दें, तो हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु ने इनकार किया, तो उन्हों ने उनके साथ लड़ाई की और वह मज़लूमियत की हालत में शहीद कर दिए गए। अल्लाह उनसे खुश हो।
“अल-बिदाया वन्निहाया” (11/473-520).
शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह ने फरमायाः
“यज़ीद बिन मुआवियह, उसमान बिन अफ्फान रज़ियल्लाहु अन्हु की खिलाफत में पैदा हुआ था, और उसने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का ज़माना नहीं पाया था, और न ही वह विद्वानों की सर्वसहमति के साथ सहाबा में से था, न ही वह दीनदारी और ईमानदारी से प्रसिद्ध लोगों में से था, वह मुसलमानों के नवजवानों में से था, और न ही वह काफिर व ज़ंदीक़ था, वह अपने बाप के बाद कुछ मुसलमानों की नापसंदीदगी और कुछ मुसलमानों की सहमति के साथ शासक बना, उसके अंदर बहादुरी और दानशीलता थी, तथा वह बुराईयों का प्रदर्शन करने वाला नहीं था जैसाकि उसके विरोधी लोग उसके बारे में वर्णन करते हैं। उसके शासनकाल में बहुत भयंकर चीज़ें घटित हुईं : उनमें से एक हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु की हत्या है ; उसने हुसैन की हत्या का आदेश नहीं दिया था, और न ही उसने उनकी हत्या पर प्रसन्नता प्रकट की थी, और न ही उनके दांतों को लकड़ी से कुरेदा, और न ही हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु के सिर को शाम ले जाया गया, किंतु उसने हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु को रोकने और उन्हें शासन से दूर रखने का आदेश दिया था, चाहे उनसे लड़ाई ही करनी पड़े, तो उसके गवर्नरों ने उसके आदेश पर वृद्धि कर दी . . . चुनाँचे हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु ने उनके सामने यह माँग रखी कि वह यज़ीद के पास चले जाएं, या वह सीमा पर जिहाद के लिए चले जाएं, या वह मक्का वापस लौट जाएं। परंतु उन लोगों ने आप रज़ियल्लाहु अन्हु की इन सभी मांगों को न माना सिवाय इसके कि वह अपने आपको उनके हवाले कर दें, और उमर बिन सअद ने उनसे लड़ाई का आदेश दे दिया, तो उन्हों ने आपको मज़लूमियत की हालत में क़त्ल कर दिया, तथा आपके साथ ही आपके घराने के एक समूह को भी क़त्ल कर दिया, अल्लाह उनसे प्रसन्न हो। आप रज़ियल्लाहु अन्हु का क़त्ल बड़ी विपदाओं में से था, क्योंकि हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु का क़त्ल और उनसे पहले उसमान रज़ियल्लाहु अन्हु का क़त्ल इस उम्मत में फित्नों (उपद्रवों) के सबसे महान कारणों में से है और उन दोनों को क़त्ल करने वाले अल्लाह के निकट सबसे बुरे मनुष्यों में से है।’’ अंत हुआ।
‘‘मजमूउल फतावा’’ (3/410-413).
तथा इब्ने तैमिय्या (25/302-305) ने यह भी फरमाया :
“जब हुसैन बिन अली रज़ियल्लाहु अन्हुमा की आशूरा के दिन हत्या कर दी गई जिन्हें अत्याचारी, विद्रोही समूह ने क़त्ल किया था, और अल्लाह तआला ने हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु को शहादत से सम्मानित किया, जैसाकि आपके घराने में से कुछ लोगों कों इस से सम्मानित किया था, अल्लाह ने हमज़ा, जाफर और उनके बाप अली और उनके अलावा अन्य लोगों को शहादत से सम्मानित किया, अल्लाह तआला ने उनकी शहादत से उनके पद को बढ़ा दिया और उनके स्थान को सर्वोच्च कर दिया, क्योंकि वह और उनके भाई हसन स्वर्गवासियों के युवाओं के सरदार हैं, और सर्वोच्च पद प्रीक्षा के द्वारा ही प्राप्त होते हैं, जैसाकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से जब पूछा गया कि: लोगों में सबसे कठोर आज़माइश (प्रशिक्षण) किसका होता है ? तो आप ने फरमाया : पैगंबर, फिर सदाचारी (नेक लोग), फिर जो बेहतर और अच्छे लोग हैं, आदमी की आज़माइश उसकी दीनदारी (धर्मपरायणता) के हिसाब से होती है, यदि उसकी धर्मनिष्ठता में मज़बूती होती है तो उसकी आज़माइश को बढ़ा दिया जाता है, और यदि उसकी दीनादारी में कमज़ोरी होती है तो उसकी आज़माइश कम कर दी जाती है, और मोमिन की निरंतर आज़माइश होती रहती हैं यहाँ तक कि वह ज़मीन पर इस हालत में चलता फिरता है कि उसके ऊपर कोई पाप नहीं होता है।’’ इसे तिर्मिज़ी वगैरह ने रिवायत किया है।
हसन और हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हुमा के लिए अल्लाह की तरफ से ऊँचा पद प्राप्त हो चुका था, किंतु उन दोनों के साथ ऐसी आजमाइश पेश नहीं आई थी जो उनके पूर्वजों के साथ पेश आ चुकी थीं, क्योंकि वे दोनों इस्लाम की प्रभुत्ता में पैदा हुए थे, और इज़्ज़त व करामत में उनका पालन पोषण हुआ था, और मुसलमान लोग उनका सम्मान और आदर करते थे, और जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मृत्यु हुई तो उन लोगों समझबूझ की आयु को भी पूरा नहीं किया था, तो उनके ऊपर अल्लाह की अनुकंपा यह हुई कि अल्लाह ने उन्हें ऐसी आज़माइश से पीड़ित किया जो उन्हें उनके घरवालों से मिला दे, जैसाकि उन दोनों से श्रेष्ठतर लोगों की आज़माइश हो चुकी थी, क्योंकि अली बिन अबी तालिब उन दोनों से बेहतर हैं, और वह शहादत की हालत में क़त्ल कर दिए गए, और हुसैन की हत्या लोगों के बीच फित्ने फूटने का कारण बन गई, जिस तरह कि उसमान रज़ियल्लाहु अन्हु की हत्या लोगों के बीच फित्नों के जन्म लेने के महान कारणों में से थी, और उसी के कारणवश आज तक उम्मत के अंदर फूट पाया जाता है . . .
जब हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु निकले और देखा कि मामला बदल गया है, तो आपने उन लोगों से यह मांग की कि उन्हें वापस लौट जाने दें या वे किसी सीमा पर चले जाएं, या अपने चचा ज़ाद भाई यज़ीद के पास चले जाएं तो उन लोगों इन सब मांगों को ठुकरा दिया, यहाँ तक कि वह अपने आपको उनके हवाले कर दें, और उन लोगों ने आप से लड़ाई की तो आप ने भी उनसे लड़ाई की तो उन्हों ने आपको और आपके साथ एक समूह को मज़लूमियत व शहादत की हालत में क़त्ल कर दिया, यह ऐसी शहादत थी जिससे अल्लाह तआला ने आपको सम्मानित किया और आपको आपके पवित्र घराने वालों से मिला दिया, और जिसने आप पर अत्याचार और अन्याय किया था उसे उसके कारण अपमानित कर दिया।” अंत हुआ।