जंग से पहले जंग के एलान का हुक्म
क़ुरआन में फ़रमाया गया है कि, ‘‘अगर तुम्हें किसी क़ौम से ख़यानत (यानी संधि की प्रतिज्ञा तोड़ने) का ख़तरा हो तो उसकी प्रतिज्ञा खुल्लम-खुल्ला उसके मुंह पर मार दो’’ (8:58)। इस आयत में इस बात से मना कर दिया गया है कि जंग के ऐलान के बग़ैर दुश्मन के ख़िलाफ़ जंग छेड़ दी जाए, सिवाय इसके दूसरे फ़रीक़ ने आक्रामक कार्यवाइयां शुरू कर दी हों। अगर दूसरे फ़रीक़ ने एलान के बग़ैर आक्रामक कार्यवाइयों की शुरुआत कर दी हो तो फिर हम बग़ैर एलान किये उसके ख़िलाफ़ जंग कर सकते हैं, वरना कु़रआन हमें यह हुक्म दे रहा है कि एलान करके उसे बता दो कि अब हमारे और तुम्हारे बीच कोई संधि, प्रतिज्ञा बाक़ी नहीं रहा है और अब हम और तुम बरसरे जंग हैं। अगरचे मौजूदा अन्तर्राष्ट्रीय क़ानून का तक़ाज़ा भी यह है कि जंग के ऐलान के बग़ैर जंग की जाए, लेकिन बीसवीं सदी में भी तमाम बड़ी-बड़ी लड़ाइयां जंग के एलान के बग़ैर शुरू हुईं। वह उनका अपना बनाया हुआ क़ानून है, इसलिए वह अपने ही क़ानून को तोड़ने के मुख़्तार हैं। मगर हमारे लिए यह ख़ुदा का दिया हुआ क़ानून है, हम उसकी ख़िलाफ़वर्ज़ी नहीं कर सकते।