दुश्मन की लाशों पर गु़स्सा न निकाला जाए
इस्लाम में पूरे तौर पर इस बात को भी मना किया गया है कि दुश्मन की लाशों का अनादर किया जाए या उनकी गत बिगाड़ी जाए। हदीस में आया है कि ‘‘हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने दुश्मनों की लाशों की काट, पीट या गत बिगाड़ने से मना फ़रमाया है।’’ यह हुक्म जिस मौक़े पर दिया गया, वह भी बड़ा सबक़-आमोज़ है। उहुद की जंग में जो मुसलमान शहीद हुए थे, दुश्मनों ने उनकी नाक काट कर उनके हार बनाए और गलों में पहने। हुजू़र (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के चचा हज़रत हम्ज़ा (रज़ियल्लाहु अन्हु) का पेट चीर कर उनका कलेजा निकाला गया और उसे चबाने की कोशिश की गई। उस वक़्त मुसलमानों का गु़स्सा हद को पहुंच गया था। मगर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया कि तुम दुश्मन क़ौम की लाशों के साथ ऐसा सुलूक न करना। इसी से अंदाज़ा किया जा सकता है कि यह दीन हक़ीक़त में ख़ुदा ही का भेजा हुआ दीन है। इसमें इन्सानी जज़्बात और भावनाओं का अगर दख़ल होता तो उहुद की जंग में यह दृश्य देखकर हुक्म दिया जाता कि तुम भी दुश्मनों की फ़ौजों की लाशों का इस तरह अनादर करो।