पुरूषों के लिए सौंदर्य प्रसाधनों का उपयोग करने का हुक्म
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
पुरूषों के लिए सौंदर्य प्रसाधनों, जैसे क्रीम आदि का प्रयोग करने का हुक्म एक स्थिति से दूसरी स्थिति में विभिन्न होता है, इसका स्पष्टीकरण इस तरह है :
सर्व प्रथम :
जिसका प्रयोग मात्र सौंदर्य और सजावट के लिए हो तो पुरूषों के लिए उसका इस्तेमाल उचित नहीं है ; क्योंकि सौंदर्य की ज़रूरत औरत को होती है, और पुरूष के लिए मर्दानगी के लक्षण कठोरता और खुरदुरापन उचित हैं, उसके लिए स्त्रीत्व और ज़नानापन उचित नहीं है।
दूसरा :
जो चीज़ें महिलाओं के श्रृंगार और उनके सौंदर्य के लिए विशिष्ट हैं, जैसे - होंठ की लाली (लिपस्टिक) और कोटिंग्स और इनके समान अन्य चीज़ें : तो पुरूष के लिए उससे श्रृंगार करना जायज़ नहीं हैं ; क्योंकि यह महिलाओं की नकल करना है, और महिलाओं की नक़ल करना हराम (निषिद्ध) और बड़े गुनाहों में से है।
तीसरा :
जिसका प्रयोग त्वचा के रंग को बदलने का कारण बनता है, उदाहरण के तौर पर काले से सफेद कर देना : तो अगर यह बदलाव अस्थायी है तो इसमें कोई आपत्ति की बात नहीं है, और अगर यह बदलाव हमेशा के लिए है तो यह जायज़ नहीं है ; क्योंकि यह अल्लाह सर्वशक्तिमान की सृष्टि (रचना) को बदलना है। इस बात की चेतावनी के साथ कि इस तरह के सौंदर्य उपयोग पुरूषों के लिए उचित नहीं हैं, जैसाकि इसका उल्लेख किया जा चुका है।
चौथा :
उसमें से जो किसी दोष को दूर करने के लिए है तो उसके प्रयोग करने में कोई आपत्ति की बात नहीं है, जैसे - चेहरे से मुँहासे दूर करने के लिए क्रीम का इस्तेमाल करना ; क्योंकि यह दवा और उपचार के अध्याय से है।
शैख इब्न उसैमीन रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गया :
त्वचा को सफेद करने के लिए, या मुँहासे और विकृतियाँ दूर करने के लिए मलहम और लोशन उपयोग करने का क्या हुक्म है?
तो उन्हों ने उततर दिया :
जहाँ तक पहली बात का संबंध है तो वह जायज़ नहीं है, अर्थात आप किसी ऐसी चीज़ का उपयोग नहीं करेंगे जिससे त्वचा का रंग बदल जाता है, क्योंकि यह उस गोदना (टैटू) से भी अधिक गंभीर है जिसके करनेवाली पर धिक्कार की गई है। रही बात मुँहासे और इसके समान चीज़ों को दूर करने की : तो इसमें कोई आपत्ति की बात नहीं है, क्योंकि यह एक रोग का उपचार है, और रोग का उपचार करने में कोई आपत्ति की बात नहीं है। क्योंकि जिस चीज़ का मक़सद सुंदरता है उसके बीच और जिस चीज़ का मक़सद दोष को दूर करना है उसके बीच अंतर है। पहली चीज़ जायज़ नहीं है यदि वह स्थायी तौर पर है। और दूसरी : जायज़ है।
''फतावा नूरून अलद दर्ब'' (22/2) मक्तबा अश्शामिला के संख्याकरण से अंत हुआ।
इस बात से सचेत रहना चाहिए कि सौंदर्य प्रसाधनों में से जो चीज़ अशुद्ध (अपवित्र) पदार्थों या हानिकारक रसायनों से बनाई गई है उसका इस्तेमाल इन में से किसी भी चीज़ में जायज़ नहीं है।