रसूलों ( र्इश्दूतों ) पर र्इमान लाना
इस बात पर र्इमान (विश्वास) रखना कि अल्लाह सुब्हानहु वतआला ने मनुष्यों में से कुछ पैग़म्बर और र्इश्दूत चयन किए है जिन्हें अपने बन्दों की तरफ धर्म-शास्त्रों के साथ भेजा है ताकि वे अल्लाह तआला की इबादत की पूर्ति, उसके धर्म की स्थापना, और उसकी तौहीद यानी उसकी रूबूबियत, उलूहियत और नामों व गुणों में उसकी एकता को क़ार्इम करें, अल्लाह ताआला काफरमान है : '' और (ऐ हज़रत पैग़म्बर!) हमने आप से पहले जब कभी कोर्इ हज़रत पैग़म्बर भेजा तो उसके पास 'वह्य भेजते रहे कि बस हमारे सिवा कोर्इ माबूद (क़ाबिले परसतिश) नहीं तो मेरी ही इबादत करो। '' (सूरतुल अंबिया :25)
तथा उन्हें अपनी शरीअत का लोगों में प्रसार करने का आदेश दिया ताकि रसूलों के आ जाने के बाद लोगों के लिए अल्लाह पर कोर्इ हुज्जत (बहाना) न बाक़ी रह जाए , इसलिए वह उन पर और उनकी लार्इ हुर्इ शरीअत पर र्इमान लाने वालों को अल्लाह की रज़ामंदी और उसकी जन्नत की शुभसूचना देने वाले हैं, और जिन लोगों ने उनका और उनकी लार्इ शरीअत के साथ कुफ्र किया उन्हें अल्लाह के क्रोध और उसकी यातना से डराने वाले हैं, अल्लाह तआला का फरामन है :''और हम तो रसूलों को सिर्फ इस ग़रज़ से भेजते हैं कि (नेको को जन्नत की) खुषख़बरी दें और (बुरों को अज़ाबे जहन्नम से) डराएँ, फिर जिसने र्इमान कुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए तो ऐसे लोगों पर (क़ियामतमें) न कोर्इ ख़ौफ होगा और न वह ग़मग़ीन होगें। और जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुठलाया तो उनके बदकारी करने के कारण (हमारा) अज़ाब उनको लिपट जाए गा। '' (सूरतुल अंआम :48-49)
अल्लाह के रूसूलों और नबियों की संख्या बहुत अधिक जिसे अल्लाह के अलावा कोर्इ नहीं जानता, अल्लाह तआला का फरमान है : ''नि:सन्देह हम आप से पूर्व भी बहुत से हज़रत पैग़म्बर भेज चुके हैं, जिन में से कुछ की घटनाओं का वर्णन हम आप से कर चुके हैं तथा उन में से कुछ की कथाओं का वर्णन तो हम ने आप से किया ही नहीं। '' (सूरत ग़ाफिर: 78)
सभी रसूलों पर र्इमान लाना वाजिब है, और यह कि वे मनुष्यों में से हैं और उन्हें मानव स्वभाव के अलावा किसी अन्य स्वभाव से विशिष्ट नहीं किया गया है, अल्लाह ताअला का फरमान है : ''और हम ने आप से पहले भी आदमियों ही को ( हज़रत पैग़म्बर बनाकर) भेजा था कि उनके पास वह्य भेजा करते थे तो अगर तुम लोग खु़द नहीं जानते हो तो आलिमों से पूछकर देखो। और हमने उन (पैग़म्बरों) के बदन ऐसे नहीं बनाए थे कि वह खाना न खाएँ और न वह (दुनिया में) हमेशा रहने सहने वाले थे। (सूरतुल अमिबया :7-8)
तथा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के बारे में अल्लाह तआला ने फरमाया : ''(ऐ हज़रत पैग़म्बर) आप कह दीजिए कि मैं भी तुम्हारे ही समान एक आदमी हूँ (फकऱ् इतना है) कि मेरे पास ये वह्य आर्इ है कि तुम्हारा माबूद यकता माबूद है तो जिस शख़्स को आरज़ू हो कि वह अपने परवरदिगार के सामने हाजि़र होगा तो उसे अच्छे काम करने चाहिए और अपने परवरदिगार की इबादत में किसी को शरीक न करे। '' (सरतुल कहफ :110)
तथा अल्लाह तआला ने र्इसा अलैहिस्सलाम के बोर में फरमाया : ''मरियम के बेटे मसीह तो बस एक हज़रत पैग़म्बर हैं और उनके पहले (और भी) बहुतेरे हज़रत पैग़म्बर गुज़र चुके हैं और उनकी माँ भी (अल्लाह की) एक सच्ची बन्दी थी (और आदमियों की तरह) ये दोनों (के दोनों भी) खाना खाते थे, ग़ौर तो करो हम अपनी आयात इनसे कैसा साफ़ साफ़ बयान करते हैं, फिर देखो तो कि ये लोग कहाँ भटके जा रहे हैं। '' (सूरतुल मार्इदा :75)
ये लोग (यानी हज़रत पैग़म्बर ) उलूहियत की विशेषताओं में से किसी भी चीज़ के मालिक नहीं होते, इसलिए वे किसी को लाभ और हानि नहीं पहुँचा सकते, तथा संसार में उनका कोर्इ सत्ता नहीं होता है, अल्लाह तआला ने अपने नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के विषय में, जो कि समस्त रसूलों के नायक और अल्लाह के निकट सबसे महान पद वाले हैं, फरमाया :
''आप कह दीजिए कि मैं स्वयं अपने नफ्स (आप) के लिए किसी लाभ का अधिकार नहीं रखता और न किसी हानि का, किन्तु उतना ही जितना अल्लाह ने चाहा हो, और यदि मैं प्रोक्ष की बातैं जानता होता तो बहुत से लाभ प्राप्त कर लेता और मुझ को कोर्इ हानि न पहुंचती, मैं तो केवल डराने वाला और शुभ सूचना देने वाला हूँ उन लोगों को जो र्इमान रखते हैं। '' (सूरतुल-आराफ: 188)
तथा रसूलों ने अमानत को पहुँचा दिया, अल्लाह के संदेश का प्रसार व प्रचार कर दिया, और वे लोगों में सब से सम्पूर्ण इल्म (ज्ञान) व अमल वाले हैं, और अल्लाह तआला ने अपने सनदेश के प्रसार में झूठ, खियानत और कोताही से उन्हें पाक और पवित्र रखा है, अल्लाह तआला का फरमान है : ''और किसी पैग़म्बर से नहीं हो सकता की कोर्इ निशानी (मौजिज़ा ) अल्लाह की इजाज़त के बगैर ला दिखाए। '' (सरतुर-रअद :38)
तथा यह भी अनिवार्य है कि हम सभी रसूलों पर र्इमान लायें, जो आदमी कुछ पर र्इमान लाए और कुछ पर र्इमान न लाए वह काफिर है और इस्लाम धर्म से खारिज है, अल्लाह तआला का फरमान है : '' बेशक जो लोग अल्लाह और उसके रसूलों से इन्कार करते हैं और अल्लाह और उसके रसूलों में तफ़रक़ा डालना चाहते हैं और कहते हैं कि हम कुछ (पैग़म्बरों) पर र्इमान लाए हैं और कुछ का इन्कार करते हैं और चाहते हैं कि इस (कुफ्ऱ व र्इमान) के दरमियान एक दूसरी राह निकलें। यही लोग हक़ीक़तन काफि़र हैं और हमने काफि़रों के वास्ते जि़ल्लत देने वाला अज़ाब तैयार कर रखा है। '' (सूरतुनिनसा : 150-151)
क़ुरआन करीम ने 25 नबियों व रसूलों का हम से उल्लेख किया है, अल्लाह ताअला का फरमान है : ''और ये हमारी (समझार्इ बुझार्इ) दलीलें हैं जो हमने इबराहीम को अपनी क़ौम पर (ग़ालिब आने के लिए) अता की थी, हम जिसके मरतबे चाहते हैं बुलन्द करते हैं बेषक तुम्हारा परवरदिगार हिक़मत वाला बाख़बर है। और हमने इबराहीम को इसहाक़ वा याक़ूब (सा बेटा पोता) अता किया हमने सबकी हिदायत की और उनसे पहले नूह को (भी) हम ही ने हिदायत की और उन्हीं (इबराहीम) की औलाद से दाऊद व सुलेमान व अय्यूब व यूसुफ व मूसा व हारुन (सब की हमने हिदायत की) और नेकों कारों को हम ऐसा ही इल्म अता फरमाते हैं। और ज़करिया व यह्या व र्इसा व इलियास (सब की हिदायत की (और ये) सब (ख़ुदा के) नेक बन्दों से हैं। और इसमार्इल व इलियास व युनूस व लूत (की भी हिदायत की) और सब को सारे जहाँन पर फज़ीलत अता की। '' (सूरतुनिनसा : 83-86)
तथा आदम अलैहिस्सलाम के बारे में फरमाया : ''बेशक अल्लाह ने आदम और नूह और इबराहीम की संतान और इमरान की संतान को सारे संसार पर चुन लिया। '' (सूरत आल इमरान : 33)
तथा अल्लाह तआला ने हूद अलैहिस्सलाम के बारे में फरमाया : ''और (हमने) क़ौमे आद के पास उनके भार्इ हूद को (पैग़म्बर बनाकर भेजा और) उन्होनें अपनी क़ौम से कहा ऐ मेरी क़ौम! अल्लाह ही की इबादत करो, उसके सिवा कोर्इ तुम्हारा माबूद नहीं। '' (सूरत हूद :50)
तथा सालेह अलैहिस्सलाम के बारे में फरमाया : ''और (हमने) क़ौमे समूद के पास उनके भार्इ सालेह को (पैग़म्बर बनाकर भेजा) तो उन्होंने (अपनी क़ौम से) कहा ऐ मेरी क़ौम! अल्लाह ही की उपासना करो उसके सिवा कोर्इ तुम्हारा माबूद नहीं। '' (सूरत हूद :61)
तथा अल्लाह तआला ने शुऐब अलैहिस्सलाम के बारे में फरमाया : ''और हमने मदयन वालों के पास उनके भार्इ शुऐब को पैग़म्बर बना कर भेजा उन्होंने (अपनी क़ौम से) कहा ऐ मेरी क़ौम! अल्लाह ही की इबादत करो उसके सिवा तुम्हारा कोर्इ माबूद नहीं। '' (सूरत हूद :84)
तथा इदरीस अलैहिस्सलाम के बारे में अल्लाह तआला ने फरमाया : ''और इसमार्इल और इदरीस और जु़लकिफ़्ल ये सब साबिर (धैर्यवान) बन्दे थे।) '' (सूरतुल अमिबया :85)
तथा अल्लाह तआला ने मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के बारे में यह सूचना देते हुए कि आप सभी पैग़म्बरों की अनितम कड़ी और मुदि्रका हैं, अत: आप के बाद क़ियामत के दिन तक कोर्इ नबी व हज़रत पैग़म्बर नहीं, इरशाद फरमाया : '' (लोगो! ) मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) तुम्हारे मर्दों में से किसी के बाप नहीं, किन्तु आप अल्लाह के पैग़म्बर और तमाम नबियों के खातम (मुदि्रका) हैं। '' (सूरतुल अहज़ाब:40)
इसलिए आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का धर्म पूर्व धर्मों की पूर्ति करने वाला और उनको समाप्त करने वाला है, अत: वही सम्पूर्ण सच्चा धर्म है जिसका पालन करना अनिवार्य है और वही क़ियामत के दिन तक बाक़ी रहने वाला है।
उन्हीं रसूलों में से पाँच ऊलुल अज़्म (सुदृढ़ निश्चय और संकल्प वाले) पैग़म्बर हैं, और वे धर्म की दावत का बार उठाने, लोगों तक अल्लाह का संदेश पहुँचाने और उस पर सब्र करने में सबसे शक्तिवान हैं, और वे नूह, इब्राहीम, मूसा, र्इसा और मुहम्मद अलैहिमुस्सलातो वस्सलाम हैं, अल्लाह तआला का फरमान है : ''और जब हम ने समस्त नबियों से वचन लिया और विशेष रूप से आप से तथा नूह से तथा इब्राहीम से तथा मूसा से तथा मरियम के पुत्र र्इसा से। '' (सूरतुल-अहज़ाब: 7)
रसूलों पर र्इमान लाने के फायदे :
- बन्दों पर अल्लाह तआला की कृपा और उनसे उसकी महब्बत का बोध होता है कि उस ने उन्हीं में से उन पर पैग़म्बर भेजे ताकि वे उन तक अल्लाह के संदेश (धर्मशास्त्र) को पहुँचा दें, और लोग उस में और सकी ओर दावत देने में उनका अनुसरण करें ।
- सच्चे मोमिनों की दूसरे लोगों से पड़ताल और पहचान हो जती हैं, क्यों कि जो अपने हज़रत पैग़म्बर पर र्इमान ले आया उसके लिए अनिवार्य है कि वह उसके अलावा अन्य रसूलों पर भी र्इमान लाए जिनके बारे में उनकी किताबों में शुभ सूचना दी गर्इ है।
- अल्लाह तआला की तरफ से उसके बन्दों के लिए नेकियों के अन्दर कर्इ गुना बढ़ोतरी कर दी जाती है, क्योंकि जो अपने हज़रत पैग़म्बर पर र्इमान लाया और साथ ही साथ उसके बाद आने वाले रसूलों पर भी र्इमान लाया, उसे दोहरा अज्र दिया जाए गा।