अल्लाह सर्वशक्तिमान का सम्मान और उसे गाली देनेवाले का हुक्म | जानने अल्लाह

अल्लाह सर्वशक्तिमान का सम्मान और उसे गाली देनेवाले का हुक्म


अब्दुल अज़ीज़ बिन मरज़ूक़ अत्तरीफ़ी

सबसे महान अक़्ली (विवेक और बुद्धि संबंधी) व नक़ली (धार्मिक) कर्तव्यों में से, सर्वशक्तिमान सृष्टा के पद को पहचानना है जिसकी एकता व एकेश्वरवाद को ब्रह्माण्ड भी स्वीकारता है, और स्वयं प्रति सृष्टि के अंदर उसके सृष्टा व रचियता की महानता, उसकी महान कारीगरी और अनुपमता पर स्पष्ट निशानियाँ (प्रमाण) मौजूद हैं। यदि प्रत्येक व्यक्ति अपने आप को देखे और उसमें मनन चिंतन करे, तो अपने पैदा करनेवाले सर्वशक्तिमान (सृष्टा) के पद व प्रतिष्ठा को पहचान जायेगा,

जैसाकि अल्लाह का कथन है

'और स्वयं तुम्हारे भीतर (चिंह) हैं, क्या तुम देखते नहीं।'

सूरत ज़ारियात : 2

तथा नूह अलैहिस्सलाम ने अपनी जाति के लोगों से कहा

तुम्हें क्या हो गया है कि तुम अल्लाह की महानता व प्रताप से नहीं डरते हो, हालांकि उसने तुम्हें कर्इ अवस्थाओं में पैदा किया है।

सूरत नूह : 13 -14

इब्ने अब्बास और मुजाहिद ने फरमाया : ‘‘तुम्हें क्या हो गया है कि तुम अल्लाह की महानता व प्रताप से नहीं डरते हो।’ [1]

तथा इब्ने अब्बास ने यह भी फरमाया : ‘‘तुम्हें क्या हो गया है कि तुम अल्लाह का उस तरह सम्मान नहीं करते हो जैसा कि उसका सम्मान करने का हक़ है।''

नूह अलैहिस्सलाम ने उन्हें अपने अंदर और अपनी रचना की विभिन्न अवस्थाओं में मनन चिंतन करने की ओर लौटाया है ताकि वे अपने ऊपर उसके हक़ को पहचान सकें। अत: अपने नफ्स और उसकी विभिन्न अवस्थाओं में मनन चिंतन करना अल्लाह का सम्मान करने और उसके पद और महिमा को पहचानने के लिए काफी है। तो फिर आसमान व ज़मीन में अल्लाह की अन्य सभी सृष्टियों में ममन चिंतन करने का सुपरिणाम क्या होगा! वास्तव में लोग अल्लाह की महानता व महिमा से इसलिए अनभिज्ञ हैं क्योंकि वे अल्लाह के चिन्हों व निशानियों को बिना समझ बूझ के देखते हैं, उनपर वे जल्दी से आनंद लेते हुए गुज़रते हैं, इब्रत व नसीहत लेते हुए, और मनन चिंतन करते हुए नहीं गुज़रते हैं :

और आकाशों और धरती में बहुत सी निशानियाँ हैं, जिनसे ये मुँह फेरकर गुज़र जाते हैं।

(सूरत यूसुफ : 105)

चुनाँचे विमुखता प्रकट करने वाली बुद्धियों और निश्चेत दिलों को चमत्कार लाभ नहीं पुँचाते हैं और न ही निशानियाँ उनके लिए लाभदायक सिद्ध होती हैं, अल्लाह का सम्मान वही करता है जिसने उसे देखा हो, या उसकी निशानियों को देखा हो और उसके गुणों की उसे जानकारी हो, इसीलिए विमुखता प्रकट करने वाले निश्चेत दिलों में अल्लाह का सम्मान कमज़ोर होता है, चुनाँचे उसकी अवहेलना की जाती है, उसका इनकार किया जाता है, और कभी तो उसे गाली दी जाती है और उसका उपहास किया जाता है !! और महान (अल्लाह) की उसकी महानता से अनभिग होने की मात्रा में अवहेलना की जाती है, और जिस मात्रा में दिलों के अंदर उसके पद व प्रतिष्ठा की कमी होती है उसी मात्रा में उसके साथ कुफ्र किया जाता है और उसके हक़ का इनकार किया जाता है, और एक कमज़ोर की कमज़ोरी से अनभिग होने की मात्रा में उसका आज्ञापालन किया जाता है, और जिस मात्रा में दिलों के अंदर उसके पद व प्रतिष्ठा की वृद्धि होती है उसी मात्रा में उसकी उपासना की जाती है और उसका आदर व सम्मान किया जाता है।

इसी कारण अनेकेश्वरवादियों ने बुतों (मूर्तियों) की पूजा की, और उस अस्तित्व को नकार दिया जो हड्डियों को जीवित करता है, अल्लाह तआला ने इस खराबी का वर्णन करते हुए फरमाया :

हे लोगो! एक उदाहरण दिया जा रहा है, ज़रा ध्यान से सुनो, अल्लाह के सिवाय तुम जिन - जिन को पुकारते रहे हो वे एक मक्खी भी पैदा नहीं कर सकते, अगरचे वे सब के सब एकजुट हो जायें, बल्कि अगर मक्खी उनसे कोर्इ चीज़ छीन ले तो वे उसे उससे छुड़ा भी नहीं सकते। बड़ा कमज़ोर है माँगने वाला और बहुत कमज़ोर है जिस से माँगा जा रहा है। उन्हों ने अल्लाह की महानता व बड़ार्इ के अनुसार उसका आदर व सम्मान नहीं किया, नि:संदेह अल्लाह तआला सर्वशक्तिमान और बड़ा प्रभावशाली है।

(सूरतुल हज्ज : 73 - 74)

$ अल्लाह सर्वशक्तिमान के सम्मान में से : उसके गुणों और नामों की जानकारी, उसकी निशानियों में मननचिंतन, उसकी नेमतों और अनुग्रहों पर विचार करना, बीते हुए समुदायों की स्थितियों, तथा झुठलाने वालों और सत्यापन व पुष्टि करने वालों, विश्वासियों और नास्तिकों के अंजाम के बारे में दृष्टि और अंतर्दृष्टि को काम में लाना।

$ तथा अल्लाह तआला के सम्मान में से : उसके नियमों, उसके आदेशों और निषेद्धों की जानकारी करना, और उनका पालन करके और उनपर अमल करके उनका सम्मान करना है ; तो यही दिल के अंदर र्इमान को जीवित करता है, चुनाँचे र्इमान की एक गर्मी और चिंगारी होती है ; उस (ईमान) की गर्मी उस समय ठंड पड़ जाती और उसकी चिंगारी बुझ जाती है जब वह अस्तित्व जिस पर आप र्इमान रखते हैं कोर्इ आदेश देता है तो उसके आदेश का पालन नहीं किया जाता, और वह किसी चीज़ से रोकता है तो उसके निषेद्ध से नहीं रूका जाता है। इसीलिए अल्लाह तआला ने हज्ज के संस्कारों और बलि (क़ुर्बानी) के अनुष्ठान के सम्मान के बारे में फरमाया :

(बात) यही है, और जो अल्लाह (की महानता) के प्रतीकों का सम्मान करे तो यह दिलों की परहेज़गारी से है।

(सूरतुल हज्ज : 32)

आदेश और निषेद्ध का सम्मान करना, वास्तव में आदेश देने वाले का सम्मान करना है। इसीलिए अल्लाह के हक़ में नास्तिकता प्रकट नहीं होती है, और उसके साथ कुफ्र नहीं किया जाता है, उसका इनकार नहीं किया जाता और उसे बुरा भला नहीं कहा जाता है, मगर उससे पहले उसके आदेशों और निषेद्धों को भंग कर दिया गया होता है और उनका अपमान किया गया होता है।

अल्लाह सर्वशक्तिमान और उसकी महानता व महिमा से अनजाने मुँह फेरनेवाले और - इससे पहले- उसके आदेशों और निषेद्धों को निलंबित कर देनेवाले कुछ अवाम के यहाँ, विशेषकर शाम और र्इराक़ के देशों और कुछ अफरीक़ी देशों में, अल्लाह को गाली देना, बुरा भला कहना, और कभी कभार उसे ऐसे शब्दों और गुणों से नामित करना मशहूर हो चुका है जिनका चर्चा करना या उन्हें सुनना एक मुसलमान के लिए बहुत दुलर्भ होता है। और कभी तो इसे ऐसे लोग कहते हैं जो अपने आपको मुसलमान समझते हैं, इसलिए कि वे शहादतैन का इक़रार करते हैं (यानी ला इलाहा इल्लल्लाह और मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह पढ़ते हैं), और कभी तो कुछ नमाज़ियों से भी ऐसा हो जाता है, और शैतान उनकी ज़ुबानों पर इसे जारी कर देता है, और उनमें से कुछ को शैतान यह पट्टी पढ़ाता है कि वे उसके अर्थ को मुराद नहीं लते हैं, और न ही उससे अपने पैदा करनेवाले का अवमान करना चाहते हैं, तथा उन्हें यह समझाता है कि यह बेकार (तुच्छ) बातों में से है जिस पर ध्यान नहीं दिया जाता है! इसी कारण उन्हों ने इसमें लापरवाही से काम लिया है!

इस तरह की चीज़ों को स्पष्ट करने की ज़रूरत है - जबकि शुद्ध बुद्धियों में और सभी आसमानी धर्मों में उसकी खराबी, भ्रष्टता और खतरा स्पष्ट है - ताकि शैतान के छल फरेब और उसकी डोरियों को काट दिया जाए, अल्लाह सर्वशक्तिमान का आदर व सम्मान किया जाए और उसे हर ऐब व बुराई से पवित्र ठहराया जाए, चाहे वह ज़ुबान पर किसी भी रूप में आया हो, और दिलों के अंदर उसका कुछ भी मक़सद रहा हो।

अत: मैं संक्षेप में कहता हूँ :

नि:संदेह गाली देना - और यह हर वह कथन, या कर्म है जिसका मक़सद अल्लाह सर्वशक्तिमान का अवमान और अपमान हो - कुफ्र (नास्तिकता) है, इस बारे में मुसलमानों का कोर्इ मतभेद नहीं है, चाहे यह गंभीर उपहास के द्वारा हो, या खेल, हँसी और मज़ाक, या गफ़लत और अज्ञानता के तौर पर हो ! इस संबंध में लोगों के उद्देशों और मक़ासिद के बीच कोर्इ अंतर नहीं है, क्योंकि प्रत्यक्ष (ज़ाहिर) चीज़ का ही ऐतिबार किया जाता है।



  [1]''अद्दुर्रुल्लुल मंसूर'' (8/290 - 291).

 [2]''जामिउल बयान'' लित्तबरी (23/296), ''मआलिमुत-तनज़ील'' लिल-बग़वी (5/156).

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